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योग
२४३ पर किए गए हैं, किन्तु प्रयोजन की दृष्टि से उसके दो ही प्रकार होते हैंचेष्टा कायोत्सर्ग और अभिभव कायोत्सर्ग ।' कायोत्सर्ग का कालमान
चेष्टा कायोत्सर्ग का काल उच्छ्वास पर आधृत है। विभिन्न प्रयोजनों से वह आठ, पच्चीस, सत्ताईस, तीन सौ, पांच सौ और एक हजार आठ उच्छ्वास तक किया जाता है।
अभिभव कायोत्सर्ग का काल जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः एक वर्ष का है। बाहबलि ने एक वर्ष का कायोत्सर्ग किया था।
दोष-शुद्धि के लिए किए जाने वाले कायोत्सर्ग के पांच विकल्प होते हैं-(१) देवसिक कायोत्सर्ग, (२) रात्रिक कायोत्सर्ग, (३) पाक्षिक कायोत्सर्ग, . (४) चातुर्मासिक कायोत्सर्ग और (५) सांवत्सरिक कायोत्सर्ग।
छह आवश्यक हैं, उनमें कायोत्सर्ग पांचवां है। कायोत्सर्ग-काल में चतुर्विंशस्तव (चौबीस तीर्थङ्करों की स्तुति) का ध्यान किया जाता है । उसके सात श्लोक और अट्ठाईस चरण हैं। एक उच्छवास में एक चरण का ध्यान किया जाता है। इस प्रकार एक चतविशस्तव का ध्यान पच्चीस उच्छ्वासों में सम्पन्न होता है। प्रवचनसारोद्धार और विजयोदया के अनुसार इनका ध्येय-परिमाण और कालमान इस प्रकार है
प्रवचनसारोवार'
चतविशस्तव श्लोक चरण उच्छ्वास (१) देवसिक २ २५ १०० १. आवश्यकनियुक्ति, गाथा १४५२ :
सो उसग्गो दुविहो चिट्ठए अभिभवे य नायवो। भिक्खायरियाइ पढमो उवसग्गभिजुंजणे बिइओ।। २. (क) योगशास्त्र, ३ पत्र २५० : तत्र चेष्टाकायोत्सर्गोऽष्ट-पंचविंशति-सप्तविंशति
त्रिंशति-पंचशती-अष्टोत्तर सहस्रोच्छ्वासान् यावद् भवति । अभिभव
कायोत्सर्गस्तु मूहूर्तादारभ्य संवत्सरं यावद् बाहुबलिरिव भवति । (ख) मूलाराधना, २।११६, विजयोदया वृत्ति : अन्तर्महतः कायोत्सर्गस्य
जघन्यः कालः वर्षमुत्कृष्टः । ३. योगशास्त्र, ३। ४. प्रवचनसारोद्धार, ३३१८३-१८५ :
चत्तारि दो दुवालस, वीस चत्ता य हुंति उज्जोया। देसिय राय पक्खिय, चाउम्मासे य वरिसे य ।।
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