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संस्कृति के दो प्रवाह तत्त्वार्थ सूत्र (६२३) में विनय के चार ही प्रकार बतलाए गए हैं-(१) ज्ञान-विनय, (२) दर्शन-विनय, (३) चारित्र-विनय और (४) उपचार-विनय । (३) वयावृत्त्य (सेवा)
वैयावृत्य आभ्यन्तर तप का तीसरा प्रकार है। उसके दस प्रकार
१. आचार्य का वैयावृत्त्य ७. कुल का वैयावृत्त्य २. उपाध्याय का वैयावृत्त्य ८. गण का वैयावत्त्य ३. स्थविर का वैयावृत्त्य ६. संघ का वैयावृत्त्य ४. तपस्वी का वैयावृत्त्य १०. सार्मिक (समान धर्म वाले ५. ग्लान का वैयावृत्त्य साधु-साध्वी) का वैयावृत्त्य । ६. शैक्ष का वैयावृत्त्य
यह वर्गीकरण स्थानांग (१०।१७) के आधार पर है। भगवती (२५१५९८) और औपपातिक (सूत्र २०) के वर्गीकरण का क्रम कुछ भिन्न है
१. आचार्य का वैयावृत्त्य ६. शैक्ष का वैयावृत्त्य २. उपाध्याय का वैयावृत्त्य ७. कुल का वैयावृत्त्य ३. स्थविर का वैयावृत्त्य ८. गण का वैयावृत्त्य ४. तपस्वी का वैतावृत्त्य ९. संघ का वैयावृत्त्य ५. ग्लान का वैयावृत्त्य १०. सार्मिक का वैयावृत्त्य । तत्त्वार्थ सूत्र (६।२४) में ये कुछ परिवर्तन के साथ मिलते हैं१. आचार्य का वैयावृत्त्य २. उपाध्याय का वैयावृत्त्य ३. तपस्वी का वैयावृत्त्य ४. शैक्ष का वैयावृत्त्य ५. ग्लान का वैयावृत्त्य ६. गण (श्रुत स्थविरों की परम्परा का संस्थान') का वैयावृत्त्य
७. कुल का वैयावृत्त्य (एक आचार्य का साधु-समुदाय ‘गच्छ' १. तत्त्वार्थ, ६२४ भाष्यानुसारि टीका : गण:--स्थविरसंततिसंस्थितिः । स्थविरपरिग्रहः, न वयसा पर्यायेण वा, तेषां संततिः-~-परम्परा तस्याः संस्थानं-वर्तनं अद्यापि भवनं संस्थितिः।
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