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________________ १४ अपराध नहीं करता ।' यदि किसी के घर ऐसा विद्वान् व्रात्य अतिथि आ जाए (तो) स्वयं उसके सामने जाकर कहे, व्रात्य, आप कहां रहते हैं ? व्रात्य (यह ) जल ( ग्रहण कीजिए ) व्रात्य (मेरे घर के लोग आपको भोजनादि से) तृप्त करें। जैसा आपको प्रिय हो, जैसी आपकी इच्छा हो, जैसी आपकी अभिलाषा हो, वैसा ही हो अर्थात् हम लोग वैसा ही करें। ( व्रात्य से ) यह जो प्रश्न है कि व्रात्य आप कहां रहते हैं, इस ( प्रश्न ) से ( ही ) वह देवयान मार्ग को ( जिससे पुण्यात्मा स्वर्ग को जाते हैं) अपने वश में कर लेता है ।' संस्कृति के दो प्रवाह इससे जो यह कहता है व्रात्य यह जल ग्रहण कीजिए इससे अप् ( जल या कर्म्म) अपने वश में कर लेता है । यह कहने से व्रात्य (मेरे घर के लोग आपको भोजनादि से ) तृप्त करें, अपने आपको चिरस्थायी ( अर्थात् दीर्घजीवी) बना लेता है । जिसके घर में विद्वान् व्रात्य एक रात अतिथि जितने पुण्यलोक हैं उन सबको वश में कर लेता है । रहे, वह पृथ्वी में जिसके घर में विद्वान् व्रात्य दूसरी रात अतिथि रहे, वह अन्तरिक्ष में जो पुण्यलोक हैं, उन सबको वश में कर लेता है । जिसके घर में विद्वान् व्रात्य तीसरी रात अतिथि रहे, वह जो युलोक में पुण्यलोक हैं उन सबको वश में कर लेता है । जिसके घर में विद्वान् व्रात्य चौथी रात अतिथि रहे, वह पुण्यलोकों में श्रेष्ठ पुण्यलोकों को वश में कर लेता है । १. अथर्ववेद, १५२।३।१,२ : तद् यस्यैवं विद्वान् व्रात्यो राज्ञोऽतिथिगृहानागच्छेत् । श्र यांसमेनमात्मनो मानयेत् तथा क्षत्राय ना वृश्चते तथा राष्ट्राय ना वृश्चते । २. वही, १५/२/४ ११,२ : यद् तस्यैवं विद्वान् व्रात्योऽतिविर्गृहानाच्छेत् । स्वयमेनमभ्युपेत्य ब्रूयाद् व्रात्य क्यावात्सीः व्रात्योदकं व्रात्य तर्पयन्तु व्रात्य यथा ते प्रियं तथास्तु व्रात्य ययाते वशस्तथास्तु व्रात्य यथा ते निकामस्तथा स्त्विति । ३. वही, १५/२०४१३ : माह व्रात्य क्वाडवात्सीरिति पथ एव तेन देवयानानवरुद्ध । ४. वही, १५२२२४१४,५ : यदेनमाह व्रात्योदकमित्यप एव तेनाव रुन्द्ध । यदेनमाह व्रात्य तपयन्त्विति प्राणमेव तेन वर्षीयांसं कुरुते ॥ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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