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संस्कृति के दो प्रवाह गोरक्षसंहिता के अनुसार बाएं ऊरु पर दायां पैर और दाएं ऊरु पर बायां पैर रखकर दोनों हाथों को पीछे ले जा, दाएं हाथ से दाएं पैर का
और बाएं हाथ से बाएं पैर का अंगूठा पकड़ कर बैठना पद्मासन है। यह बद्ध-पद्मासन का लक्षण है । मुक्त पद्मासन में दोनों हाथों को पीछे ले जाकर अंगूठे नहीं पकड़े जाते।
- सोमदेव सूरि ने पद्मासन, वीरासन और सुखासन में जो अन्तर किया है, वह बहुत उपयुक्त लगता है। पद्मासन का अर्थ पहले बताया जा चका है। जिसमें दोनों पैर दोनों घुटनों के ऊपर के हिस्से पर रख कर बैठा जाता है अर्थात दाईं ऊरु के ऊपर बायां पैर और बाईं ऊरु के ऊपर दायां पैर रखा जाता है, उसे 'वीरासन' कहते हैं। जिसमें पैरों की गांठ बराबर रहती है, उसे 'सुखासन' कहते हैं।' दण्डायत
बृहत्कल्पभाष्य वृत्ति के अनुसार इसका अर्थ है 'दण्ड की भांति लम्बा होकर पैर पसार कर बैठना।" आचार्य हेमचन्द्र और शङ्कर के अभिमत में यह बैठ कर किया जाने वाला आसन है। उनके अनुसार यह आसन बैठकर, पैरों को फैला कर, टखनों, अंगूठों और घुटनों को सटा कर किया जाता है।
___किन्तु अपराजित सूरि ने उसे 'शयनयोग' माना है। उनके अनुसार
१. गोरक्षसंहिता : वामोरूपरि दक्षिणं हि चरणं संस्थाप्य वामं तथाप्यन्योरूपरि तस्य बन्धनविधौ धृत्वा कराभ्यां दृढम् । अंगुष्ठं हृदये निधाय चिबुकं नासाग्रमालोकयेदेतद् व्याधिविनाशकारि यमिनां पद्मासनं प्रोच्यते ॥ २. उपसकाध्ययन, ३६१७३२ । ३. बृहत्कल्पभाष्य, गाथा ५९५४, वृत्ति : दण्डस्येवायतं.-.--पादप्रसारणेन दीर्घ .यद
आसनं तद् दण्डासनम् । ४. (क) योगशास्त्र, ४।१३१ :
श्लिष्टांगुली श्लिष्टगुल्फो भूश्लिष्टोरु प्रसारयेत् ।
यत्रोपविश्य पादौ तद्दण्डासनमुदीरितम् ॥ (ख) पातज्जलयोगसूत्र, २।४६, भाष्य-विवरण :
समगुल्फो समांगुष्ठौ प्रसारयन् समजानू पादौ दण्डवद्येनोपविशेत् तत् दण्डासनम् ।
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