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________________ संस्कृति के दो प्रवाह - देवराज शक्रेन्द्र ने भगवान् से प्रार्थना की-'इतनी रमणीय केशराशि को इसी प्रकार रहने दें। भगवान ने उसकी बात मानी और उसे वैसे ही रहने दिया। इसीलिए भगवान् ऋषभ की मूर्ति के कंधों पर आज भी केशों की वल्लरिका की जाती है । धुंघराले और कंधों तक लटकते हुए बाल उनकी प्रतिमा के प्रतीक हैं।' भगवान् ऋषभ की प्रतिमाओं को जटा-शेखर युक्त कहा गया है।' केशी वषभ प्राग-वैदिक थे और श्रमण संस्कृति के आदि-स्रोत--यह इस केशी-स्तुति से स्पष्ट है। __ ऋग्वेद में केशी और वृषभ का एक साथ उल्लेख मिलता है। मुद्गल ऋषि की गाएं (इन्द्रियां) चुराई जा रही थीं, तब ऋषि के सारथी केशी वृषभ के वचन से वे अपने स्थान पर लौट आईं अर्थात् ऋषभ के उपदेश से वे अन्तर्मुखी हो गईं।' वात्य अथर्ववेद के व्रात्यकाण्ड का सम्बन्ध किसी ब्राह्मणेतर परम्परा से है । आचार्य सायण ने व्रात्य को विद्वत्तम, महाधिकार, पुण्यशील, विश्व१. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, वक्षस्कार २, सू० ६५ : चउहिं अट्टाहिं लोअं करेइ। वृत्ति-तीर्थकृतां पंचमुष्टिलोचसम्भवेऽपि अस्य भगवतश्चतुर्मुष्टिकलोचगोचरः। श्रीहेमाचार्यकृतऋषभचरित्राद्यभिप्रायोऽयं'प्रथममेकया मुष्ट्या स्मश्रुकूर्चयोर्लोचे तिसृभिश्च शिरोलोचे कृते एका मुष्टिमवशिष्यमाणां पवनान्दोलितां कनकावदातयोः प्रभुस्कन्धयोरुपरि लुठन्ती मरकतोपमानमाबिभ्रतीं परमरमणीयां केशवल्लरिकां वीक्ष्य प्रमोदमानेन शक्रेण भगवन् ! मय्यनुग्रहं विधाय ध्रियतामिय मित्थमेवेति विज्ञप्ते भगवतापि सा तथैव रक्षितेति, 'न ह्य कांतभक्तानां याञ्चामनुग्रहीतारः खण्डयन्ती' ति, अत एवेदानीमपि श्रीऋषभमूत्तौं स्कन्धोपरि वल्लरिकाः क्रियन्ते । २. (क) तिलोयपन्नत्ती, ४।२३० : आदिजिणप्पडिमाओ, ताओ जडमउडसेहरिल्लाओ। पडिमोवरिम्मि गंगा, अभिसित्तुमणा व सा पदि ।। (ख) तिलोयसार, ५६० : सिरिगिहसीसट्टियंबुअकण्णियसिंहासणं जडामउलं । जिणनाभिसित्तुमणा वा, ओदिण्णा मत्थए गंगा । ३. ऋग्वेद, १०६।१०२।६ : ककर्दवे वृषभो युक्त आसीदवावचीत्सारथिरस्य केशी । दुधेर्युक्तस्य द्रवतः सहानस ऋच्छन्तिष्मा निष्पदो मुद्गलानीम् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003060
Book TitleSanskruti ke Do Pravah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1991
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size11 MB
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