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१३. जैन धर्म और क्षत्रिय
जैन दर्शन क्रियावादी है। इस विचारधारा ने बहुत व्यक्तियों को प्रभावित किया था। उत्तराध्ययन में उन व्यक्तियों की एक लम्बी तालिका है, जो इस क्रियावादी विचारधारा से प्रभावित होकर श्रमण बने थे। वे क्षत्रिय, ब्राह्मण, वैश्य और शूद्र-चारों जातियों के थे। क्षत्रिय
ब्राह्मण (१) विदेहराज नमि (अ० ६) (१) भृगु (अ० १४) (२) इषुकार (अ० १४)
(२) यशा (अ० १४) (३) कमलावती रानी (अ० १४) (३) दो भृगुपुत्र (अ० १४) (४) संजय (अ० १८)
(४) गौतम (अ० २४) (५) एक क्षत्रिय (अ० १८) (५) जयघोष (अ० २५) (६) गद्दभालि (अ० १८) (६) विजयघोष (अ० २५) (७) भरत चक्रवर्ती (अ० १८) (७) गर्ग (अ० २७) (८) सगर चक्रवर्ती (अ० १८) (६) मघवा चक्रवर्ती (अ० १८) (१०) सनत्कुमार चक्रवर्ती (अ० १८) (११) शान्ति चक्रवर्ती और तीर्थङ्कर (अ. १८) (१२) कुन्थु तीर्थङ्कर (अ० १८) (१) संभूत (अ० १६) (१३) अर तीर्थङ्कर (अ० १८)
(२) अनाथी (अ० २०) (१४) महापद्म चक्रवर्ती (अ० १८) (३) समुद्रपाल (अ. २१) (१५) हरिषेण चक्रवर्ती (अ० १८) (१६) जय चक्रवर्ती (अ० १८) (१७) दशार्णभद्र (अ० १८) (१८) करकण्डू (अ० १८) (१६) द्विमुख (अ० १८)
चाण्डाल (२०) नग्नजित् (अ० १८) .. (१) हरिकेशबल (अ० १२) (२१) उद्रायण (अ० १८) (२) चित्त (अ० १३) (२२) काशीराज (अ० १८) (३) संभूत (पूर्वजन्म) (अ० १३) १. उत्तराध्ययन, १८॥३३ ।
वैश्य
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