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और वह है जागरूकता। भारतीय साधना पद्धति में एक प्रयोग चला, जिसे अजपाजप कहते हैं। आदमी अपने इष्ट का पांच-दस मिनट जप करता है, जब जप करते-करते वह अभ्यास प्राण तक चला जाए, श्वास के साथ जुड़ जाए तो फिर करने की जरूरत नहीं होती। वह श्वास प्राण के साथ चलने लगता है और अजपाजप हो जाता है। यह अजपाजप चौबीस घण्टे, यहां तक कि नींद में भी चल सकता है। सरल प्रयोग प्रेक्षाध्यान का एक प्रयोग है भावक्रिया। हम जो काम करें, वह जानते हुए करें, जागरूकता के साथ करें। ध्यान घण्टा-दो घण्टा का हो सकता है, किन्तु भावक्रिया का ध्यान चौबीस घण्टे चल सकता है। इसका अभ्यास यही है के जो भी काम करें, जानते हुए करें, जागरूकता में करें, मूर्छा और बेहोशी में न करें। अपराध बेहोशी में होता है। मादक वस्तु का सेवन बेहोशी में होता है। जागृत अवस्था में कोई आदमी शराब नहीं पी सकता। जागृत अवस्था में कोई आदमी अपराध नहीं कर सकता। जब-जब अपराध करता है, चेतना पर बेहोशी छाई होती है, अपना भान नहीं रहता है। यदि हम जागरूकता का अभिक्रम शुरू करें तो वर्तमान की विकट और विषम समस्या के लिए हम एक ऐसा विकल्प प्रस्तुत कर सकते हैं, जो शायद निर्विकल्प विकल्प होगा। आजकल मस्तिष्कीय परिवर्तन अथवा मादक वस्तुओं के सेवन की आदत को छुड़ाने के लिए कुछ औषधियों का भी प्रयोग किया जाता है। डॉक्टर भी करते हैं, होमियोपैथी और एक्यूप्रेशर वाले भी करते हैं। एक्यूप्रेशर में कुछ ऐसे प्वाइण्ट हैं, जिन पर दबाव दें तो नशे की आदत बदल जाएगी। आयुर्वेद में भी कुछ ऐसी औषधियां हैं, जिनके प्रयोग से नशे की आदत बदलती है किन्तु यह जागरूकता का प्रयोग इतना सरल है कि न तो किसी दवा की जरूरत है और न किसी चिकित्सक की। बिना किसी की मदद के चेतना का रूपान्तरण हो जाता है।
कलंक मिट गया प्रेक्षाध्यान का एक शिविर चल रहा था। असम से एक युवक आया। शिविर
५६ : नया मानव : नया विश्व
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