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राष्ट्रीय स्वयंसयेवक संघ के वरिष्ठ विचारक दत्तोपंत ठेंगड़ी का एक पत्र मिला, जिसमें उन्होंने लिखा-'अनेकान्त पर कुछ कहा जाये, लिखा जाये। क्योंकि अब विश्व की जो व्यवस्था होगी, उसका आधार अनेकान्त ही बन सकता है।' बड़ी उदारता के साथ उन्होंने इस बात की चर्चा की। हम किसी एकांगी दृष्टिकोण में न जाएं। न इधर झुकें, न उधर झुकें किन्तु अनेकान्त के द्वारा सबको समन्वित कर नये मानव और नये विश्व की कल्पना करें। नया मानव और नया विश्व ही वर्तमान समस्या का समाधान बन सकता है।
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