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________________ सामुदायिकता की भूमि को भी खतरा है, फिर आखिर जाएं कहां ? गति क्या होगी ? यह बात बिना सोचे नहीं कही जा रही है । हमारे पास उसका आधार है और वह है अनेकान्त । तीसरी प्रजाति अनेकान्त ने जो दर्शन दिया, वह विचित्र दर्शन हैं। उसे तीसरी प्रजाति कह सकते हैं । दर्शन की भाषा है-न नित्यवाद, न अनित्यवाद, किन्तु तीसरी प्रजाति - नित्यानित्यवाद। न वैयक्तिकता, न सामुदायिकता । किन्तु वैयक्तिकता + सामुदायिकता - वैयक्तिकतायुक्त सामुदायिकता और सामुदायिकतायुक्त वैयक्तिकता । इस आधार पर हम नये समाज की रचना की बात सोचें, नए समाज की रचना का संकल्प करें तो मुझे लगता है - हम सचाई के बहुत निकट पहुंच जाएंगे और एक दिन सचाई तक भी पहुंच जाएंगे । अनेकांत की सचाई विद्यार्थी ने स्कूल से लौट कर घर आया । वह बड़ा प्रसन्न था । मां ने प्रसन्नता का कारण पूछा। वह बोला- 'मां आज स्कूल में मुझे पुरस्कार मिला है।' किस बात का पुरस्कार ? 'मास्टरजी ने परीक्षा लेते हुए पूछागाय के कितने पैर होते हैं ? सब इस सवाल पर अटक गए। सब ने कहा- दो। मैंने कहा - 'तीन ।' मास्टरजी बोले- 'तुम्हारा उत्तर पूरा सही तो नहीं है, किन्तु तुम सच्चाई के निकट आ गए हो, इसलिए तुम्हें पुरस्कार मिलेगा ।' हमें भी पहले तीन तक पहुंच कर, फिर चार तक पहुंचना है । यह सचाई अनेकान्त की सचाई होगी। न साम्यवाद और न पूंजीवाद, न वैयक्तिकता और न सामुदायिकता - दोनों को मिलाएं, दोनों की अच्छाइयों को एकत्र करें, एक तीसरी प्रजाति बन जायेगी । न अस्तित्व और न नास्तित्व, किन्तु अस्तित्वनास्तित्व- यह तीसरा प्रकल्प है। आज पूरे विश्व को एक नये प्रकल्प की खोज है। मैं मानता हूं-यह तीन सप्ताह का चिन्तन-मंथन नए विकल्प की खोज का प्रयत्न हैं । Jain Education International नया मानव : नया विश्व : २२३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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