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यही सोचा और सब ने एक साथ हाथ खींच लिया। विमान समुद्र में गिर गया।
आधारशिला है अणुव्रत जब तक वैयक्तिक चेतना का आधार सामुदायिक चेतना को नहीं मिलता है, तब तक कल्पना नहीं की जा सकती-विश्व अच्छा बनेगा या मानव अच्छा बनेगा। अणुव्रत का आधार सूत्र रहा-वैयक्तिक चेतना को पवित्र बनाओ, उसका आधार ऐसा निर्मित करो, जिस पर सामुदायिक चेतना का प्रासाद खड़ा किया जा सके। प्रासाद बड़ा और मजबूत बनाना है, मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनानी है तो उसका आधार, उसकी नींव मजबूत बनानी होगी। मजबूत आधार के बिना कोरा प्रासाद खड़ा किया जाये तो प्रासाद खड़ा नहीं होगा और खड़ा भी हो जाएगा तो टिकेगा नहीं। अणुव्रत एक आधारशिला है, जिस पर सामुदायिकता का विकास किया जा सकता है। सामुदायिकता का आधार जिस समाज में अहिंसा की पृष्ठभमि नहीं है, वह समाज चल नहीं सकता। हम समाज के इतिहास को देखें । जब समाज का संगठन बना था तब अहिंसा की पृष्ठभूमि पर ही बना था। आदमी जंगल में रहता था। आदिम यग में उसका जीवन जंगली था। एक जोड़ा रहता, छोटा परिवार रहता, स्वतंत्र रहता। किन्तु जब जंगल छोड़ा, गांव बसाए, नगर बसाए तो एक समझौता हुआ। उस समझौते का नाम था परस्परता। तुम मुझे कष्ट नहीं दोगे, मैं तुम्हें कष्ट नहीं दूंगा। हम सब मिल कर रहेंगे, सहयोग के साथ रहेंगे, एक दूसरे को बाधा नहीं पहुंचाएंगे। इस समझौते के आधार पर समाज की रचना
हुई।
वैयक्तिक चेतना का आधार सामुदायिक चेतना का आधार है परस्परता और वैयक्तिक चेतना का आधार है संयम। ये दो ही तत्त्व हैं, जिन पर हमारा ध्यान केन्द्रित होना
२१८ : नया मानव : नया विश्व
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