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समीचीन व्याख्या दर्शन जगत् में दो विचारधाराएं चलीं-अद्वैत और द्वैत की। द्वैत ने मानादो तत्त्व हैं-चेतन और अचेतन। जड़ जगत् भी स्वतंत्र है और चेतन जगत् भी स्वतंत्र है। अद्वैतवाद ने स्वीकार किया- एक ही जगत् है चेतन । जड़ तत्त्व का अस्तित्व नहीं है। वस्तुतः द्वैत और अद्वैत को पृथक् नहीं किया जा सकता। अनेकान्तवाद ने दोनों को एक साथ देखा है इसीलिए मानव की समीचीन व्याख्या हुई है, विश्व की समीचीन व्याख्या हुई है। हम अपनी सुविधा के लिए, मानव और विश्व को समाचीन बनाने के लिए, आचार और व्यवहार को समीचीन बनाने के लिए मानव की व्याख्या करें तो उसका अर्थ होगा वैयक्तिक चेतना का विकास। विश्व की व्याख्या करें तो उसका अर्थ होगा-सामुदायिक चेतना का विकास। चेतना के दो आयाम प्रत्येक मनुष्य की चेतना को दो आयाम चाहिए। अणुव्रत वैयक्तिक चेतना के विकास का सूत्र है। जब वैयक्तिक चेतना का विकास नहीं होता है, तब तक सामुदायिक चेतना के विकास की पृष्ठभूमि में छलना-प्रवंचना चलती है, धोखा चलता है, अनेक समस्याएं पैदा होती हैं।
राजनीतिक प्रणालियों ने समाजवाद और साम्यवाद के विकास का प्रयास किया। भावना गलत नहीं थी, बहुत उदात्त और करुणापूर्ण थी किन्तु एक बात को भुला दिया। सामुदायिक विकास की चेतना का प्रयत्न किया, किन्तु उसकी पृष्ठभूमि में जो वैयक्तिक चेतना है, उसको भुला दिया। परिणाम यह हुआ-जो पवित्रता आनी चाहिए थी, वह नहीं आयी। छलना पनपती रही और उस छलना ने सामुदायिक चेतना को भी ग्रस लिया।
अणुव्रत की आचार संहिता वैयक्तिक चेतना का विकास बहुत आवश्यक है। अणुव्रत की आचार सहिंता, वैयक्ति चेतना के विकास की आचार संहिता है। कहा जाता २१६ : नया मानव : नया विश्व
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