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नया मानव : नया विश्व
बिन्दु और सिंधु का सम्बन्ध बहुत पुराना है। पिण्ड और ब्राह्मण्ड का सम्बन्ध भी दर्शन जगत् में प्रचलित रहा है। दार्शनिक भाषा को छोड़ें तो बहुत सीधा शब्द है मानव और विश्व । विश्व में केवल एक मानव नहीं है, मानव भी है, प्राणीजगत् और जड़जगत् भी है। इन सबका समुच्चय विश्व है।
आंतरिक सम्बन्ध प्रत्येक मानव का सम्बन्ध विश्व के साथ है। एक मानव को समझना है तो पूरे विश्व को समझना जरूरी है और पूरे विश्व की व्याख्या करनी है तो मानव को समझना जरूरी है। इनमें इतना आन्तरिक सम्बन्ध और अन्तःक्रिया है कि एक को छोड़कर हम दूसरे की व्याख्या नहीं कर सकते। परमाणु की व्याख्या करनी है, उसे समझना है तो पूरे विश्व को समझना जरूरी है। महावीर ने कहा था- 'जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ।' जे सवं जाणइ से एगं जाणइ' जो एक को जानता है वह सबको जानता है और जो सबको जानता है, वह एक को जानता है। सबको जाने बिना एक को जाना नहीं जा सकता। बाहर से सब पृथक्-पृथक् प्रतीत होते हैं किन्तु अन्तर्जगत् में सब परस्पर जुड़े हुए हैं। मेरे हाथ में एक कपड़ा है। यह कपड़ा इतना छोटा है, किन्तु पूरे विश्व के साथ जुड़ा हुआ है। इसके साथ एक आकाश प्रदेश जुड़ा हुआ है, उससे दूसरा और फिर तीसरा जुड़ा हुआ है। एक पूरी श्रृंखला है हमारे जुड़ाव की। इस कपड़े में कंपन होता हैइसका मतलब पूरे विश्व में कंपन होता है।
नया मानव : नया विश्व : २१५
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