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मानव और संबंध
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अणुव्रत - अनुशास्ता ने मानव जाति के लिए जिस मानवधर्म का प्रतिपादन किया है, वह समाजव्यापी समस्याओं के लिए समाधान है । ऐसा समाधान, जो नई समस्या पैदा न करे । चिकित्सा के क्षेत्र में उस औषध का मूल्य है, जो रोग को मिटाए, नया रोग पैदा न करे । हिंसा आज अनिवार्य नहीं रही । एक समस्या बन गई है। उसके नाना रूप समाज को आतंकित और भयभीत कर रहे हैं। मानवीय संबंधों में बढ़ रही कटुता भी हिंसा की एक समस्या
है
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इस सन्दर्भ में मानव और संबंध- इन दो शब्दों पर विमर्श करें। पहले मानव को समझना जरूरी है। मानव की व्याख्या सामाजशास्त्रियों, मानसशास्त्रियों, दार्शनिकों तथा चिन्तन की अनेक शाखाओं ने की है । मानव को समझने का प्रयत्न किया है । समाज शास्त्र के अनुसार मनुष्य मौलिक रूप में एक सामाजिक प्राणी है। मानसशास्त्रियों ने मुनष्य और उसकी गतिविधियों की व्याख्या अचेतन और उसकी मौलिक मनोवृत्तियों के आधार पर की है। दार्शनिकों ने कर्म के आधार पर मनुष्य की व्याख्या की है अध्यात्म के आचार्यों ने चेतना के आधार पर उसे परिभाषित किया है 1 अरस्तू ने कहा- मनुष्य विवेकशील प्राणी है । वह विवेक अन्य किसी जीव में नहीं मिलता। मुझे लगता है कि कोई भी व्याख्या इनमें से गलत नहीं है तो कोई भी इनमें से पूर्णरूप से सही भी नहीं है। जहां एकांगी दृष्टिकोण होता है, वहां कोई भी एक मत सही नहीं होता और न सर्वथा त्रुटिपूर्ण होता है ।
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मानव और संबंध : ३
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