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सपादकीय)
•धरती के आंचल पर उतरती है भास्वर सूरज की पहली किरण विकसित प्रांगण अंगड़ाई लेकर उठता हुआ मानव संजोता है आशा, आशंका के भाव आज क्या होगा ? आज कैसा होगा ? क्या कल आएगा? आज सुरक्षित बीत जाएगा ? समाधि और शान्ति के साथ धृति और क्षान्ति के साथ।
•प्रतिदिन यह चिन्तन करता है मानव-मन . सुनहले भविष्य की कल्पना न रह जाए सपना समस्याओं का गहन अरण्य न शरण है, न शरण्य प्रवल है भय, दुश्चिन्ता, असुरक्षा खतरे में है अपनी ही रक्षा।
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