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________________ तनाव क्यों ? निवारण कैसे ? आर्थिक जगत् में साम्यवादी धारा में आस्था रखने वाला व्यक्ति भी अध्यात्म के साथ जुड़ता है तो कोई विरोधाभास जैसा प्रतीत नहीं होता। आज हमारी यही समस्या है कि जीवन में विसंगतियां बहुत हैं, विरोधाभास बहुत हैं। जीवन-यात्रा के तीन स्तर हैं—विचार, भावना और प्रवृत्ति । इन तीनों के साथ बहुत विसंगतियां हैं और इतनी गहरी विसंगतियां कि जहां संगत जैसा कुछ लगता ही नहीं है। कभी-कभी प्रवृत्तियों में विसंगतियां आती हैं। एक घटना है छोटी-सी । इसके द्वारा हम मूल्यांकन कर सकते हैं। गृह मंत्रालय से जेल अधिकारी के पास निर्देश आया कि पुरानी जेल छोटी पड़ रही है । कारावास का नया भवन बनाना है। कुछ ही दिन बीते, दूसरा आदेश आया कि नये भवन बनने में सामग्री लगेगी। अतः पुरानी जेल की जितनी सामग्री है, उसे काम में लेना है। थोड़े दिन बाद तीसरा आदेश आया कि जब तक नया भवन न बन जाए, पुराना भवन नहीं तोड़ना है। यह कैसी विसंगति है ! नया भवन बनाना है। पुराने भवन की सामग्री काम में लेनी है । नया भवन न बन जाए, तब तक पुराना भवन तोड़ना नहीं है । तो यह केवल आदेश की विसंगति ही नहीं है, हमारे जीवन-यात्रा में पगपग पर ऐसी विसंगतियां आती हैं। इन विरोधाभासों और विसंगतियों का कारण है तनाव । मानसिक तनाव से भी बड़ा तनाव होता है भावनात्मक तनाव । प्रेक्षा ध्यान की भाषा में हमारा फार्मूला है—उपाधि, आधि और व्याधि । उपाधि का अर्थ है--भावनात्मक तनाव । भावनात्मक तनाव होता है, तब मानसिक तनाव होता है। आधि का अर्थ है-भानसिक उलझनें, मानसिक बीमारियां और जब आधि होती है तो व्याधियां होती हैं, बीमारियां होती हैं । आजकल तो मेडिकल साइंस में भी यह मान लिया गया कि बहुत सारी बीमारियां मनोकायिक होती हैं। हमारी दुनिया में जहां हम स्थूल के आधार पर चलते हैं, वहां अधिकांश चिकित्सा कायिक बीमारियों की होती है । अधिकांश हॉस्पिटल, अधिकांश डिस्पेंसरियां और जो चिकित्सा गृह हैं, वहां शरीर की बीमारियों का निदान और चिकित्सा ज्यादा होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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