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________________ नमस्कार महामंत्र : प्रयोग और सिद्धि २६७ स्थान है—शक्तिकेन्द्र । हमारे शरीर में शक्ति के तीन विशेष केन्द्र हैं--(१) रीढ़ की हड्डी का निचला हिस्सा, (२) नाभि का भाग और (३) कंठ का भाग । ये शक्ति के तीन बड़े केन्द्र हैं। 'णमो लोए सव्वसाहूणं' के स्थान का चुनाव भी वह केन्द्र किया गया है, जो शक्ति का सबसे बड़ा भण्डार है । हम भोजन करते हैं, उससे प्राणशक्ति का निर्माण होता है। लीवर, तिल्ली, पेन्क्रियाज, आमाशय, पक्वाशय, छोटी-बड़ी आंतें, नाभिकेन्द्र के आसपासयहां शक्ति का निर्माण होता है और इसका भंडार होता है रीढ़ की हड्डी के निचले सिर में । वहां उसका स्टोर रहता है और फिर उसका वितरण होता है, उपयोग होता है। पीला रंग मनोबल के लिए बहुत जरूरी है। आज के छोटे-छोटे विद्यार्थी आते हैं और कहते हैं कि स्मृति बहुत कमजोर है। बड़ा आश्चर्य होता है कि अभी दुधमुंहे बच्चे और अभी स्मृति बहुत कमजोर ! पर ऐसा होता है । पीला रंग-ज्ञानतंतुओं को, मनोबल को मजबूत बनाने वाला होता है। शरीरबल के रहने पर भी, बुद्धिबल के रहने पर भी मनोबल कमजोर होता है तो वास्तव में मस्तिष्क स्वस्थ नहीं रहता, बहुत दुर्बल होता है । लाल रंग शक्ति का प्रतीक है, स्वास्थ्य का प्रतीक है । लाल रंग टॉनिक होता है । बहुत शक्तिशाली होता है । सिद्ध वे होते हैं जो परम शक्ति को उपलब्ध हो गए हैं । ‘णमो अरहंताणं' का ध्यान सफेद रंग के साथ हो । स्पेक्ट्रम में सूर्य की किरण के साथ सफेद रंग दिखाई देता है तो वहां सातों रंग रहते हैं, सारी शक्ति समाई हुई रहती है। सफेद रंग में सारी शक्तियां समाई हुई होती हैं। 'णमो अरहंताणं' में वे सारी शक्तियां हैं। इससे मस्तिष्क का संतुलन, मस्तिष्क का विकास होता है। यह सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है। आज की नयी वैज्ञानिक खोजों ने कुछ बहुत महत्त्वपूर्ण बातें बतलाईं। मस्तिष्क के दो हिस्से होते हैं-एक दायां हिस्सा और एक बायां हिस्सा और तीसरा भाग करें तो पीछे का हिस्सा । आज का आदमी शरीर से बीमार क्यों है ज्यादा ? आज का आदमी मन से बीमार क्यों है ? आज का आदमी चरित्र से बीमार क्यों है ? इसका कारण आज का शरीर-शास्त्री, आज के साइकोलॉजिस्ट बतलाते हैं कि जब आदमी का बायां हिस्सा ज्यादा विकसित होता है तो वह ज्यादा भौतिक बनता है, भौतिक आस्थावाला बनता है। उसमें चरित्र की आस्था नहीं होती। उसमें चरित्र का बल नहीं होता। अच्छाइयां आएंगी और अच्छाइयों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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