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________________ नमस्कार महामंत्र : प्रयोग और सिद्धि २६१ देखें तो पहली बात है श्रद्धा । जितना श्रद्धा का योग होगा, मन्त्र उतना ही फलदायी बनेगा। फिर उसके बाद उच्चारण की बात को भी गौण नहीं किया जा सकता । हो सकता है कि श्रद्धा है और गलत उच्चारण में काम बन जाता है पर जितना काम बनना चाहिए, उतना नहीं बनता। अगर चारों बातें ठीक होती हैं तो लाभ हो सकता है, वह लाभ त्रुटि रहने पर नहीं हो सकता। ये चारों बातें ठीक होनी चाहिए-श्रद्धा, सम्यक् उच्चारण, अर्थ का बोध और शब्दों का सम्यक् चयन । __ नमस्कार महामन्त्र ऐसा मन्त्र है कि जिसमें शब्दों का शक्तिशाली चयन हुआ है । कहा जा सकता है कि दुनिया में जितने मन्त्र उपलब्ध हैं, उन मन्त्रों से अधिक शक्तिशाली कहूं तो आप स्वीकार करें या न करें पर किसी भी मन्त्र से यह काम शक्तिशाली नहीं है, यह कहने में मुझे कोई कठिनाई नहीं लगती। केवल जैन परंपरा के ही नहीं, दूसरे विद्वान्, दूसरे मन्त्रविद् इस बात को स्वीकार करते हैं कि नमस्कार महामन्त्र बहुत शक्तिशाली मन्त्र है। अभीअभी सरदार शहर में इस विषय को जानने वाले एक अजैन व्यक्ति ने कहामैंने अनेक मन्त्रों का जप किया, पर इतना शक्तिशाली मन्त्र मुझे कोई नहीं लगा। यह पुस्तक की नहीं किन्तु अपने अनुभव की बात बता रहा हूं। एक मुसलमान भाई था जो नमस्कार महामन्त्र का बहुत प्रयोग करता था। वह कहता कि जैन लोग क्यों जगह-जगह भटकते हैं। उनके पास नमस्कार महामन्त्र जैसा शक्तिशाली मन्त्र है, फिर स्थान-स्थान पर क्यो जाते हैं ? आवश्यकता क्या है ? शक्तिशाली क्यों है ? इस गहराई में अभी मैं नहीं जाऊंगा क्योंकि मेरे सामने जो परिषद् है, वह इस गहराई को नहीं पकड़ पाएगी। अग्नितत्त्व, वायुतत्त्व, आकाशतत्त्व आदि तत्त्व हैं । किस अक्षर में कौन-सा तत्त्व है और किस प्रकार के परमाणुओं की संघटना होती है, कौन-सा कोण बनता है, यह गहरा विषय बन जाएगा, पर इतना अवश्य कहना चाहूंगा कि जिस मन्त्र में 'णम्' होता है, वह बहुत शक्तिशाली मन्त्र बन जाता है। 'ण' और 'ण' पर अनुस्वार होता है वह बहुत शक्तिशाली मन्त्र बन जाता है। जिस मन्त्र में 'अ' और 'र' होता है, वह मन्त्र बहुत शक्तिशाली मन्त्र बन जाता है और जिस मन्त्र में 'सिद्ध' शब्द होता है, वह मन्त्र बहुत शक्तिशाली बन जाता है । 'जिस मन्त्र में 'हू' होता है, 'ण' होता है, वह मन्त्र बहुत शक्तिशाली बन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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