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एकला चलो रे
- आक्रमण करना शुरू कर देते हैं । यह रजिस्टेंस पॉवर क्या है ? यह उसी प्राणशक्ति की एक धारा है जो हमारे शरीर के भीतर प्रवाहित होती है । इस - सन्दर्भ में नमस्कार महामंत्र को समझा जा सकता है ।
प्राण- विकास का बहुत बड़ा साधन है-— शब्द | शब्द की तरंगें हमें बहुत प्रभावित करती हैं। दो तरंगें हैं । एक शब्द की तरंग और एक रंग की तरंग । ये व्यक्ति को बहुत ज्यादा प्रभावित करती हैं। दोनों तरंगें हैं और दोनों हैं प्रकाश की तरंगें । रंग प्रकाश का उनंचासवां प्रकम्पन है । शब्द भी एक प्रकम्पन है । ये दोनों प्रकम्पन व्यक्ति को बहुत प्रभावित करते हैं । जितने शब्द हैं, वे अपनी तरंग पैदा करते हैं । यह तो - आपने देखा है कि तालाब में एक ढेला फेंका और एक लहर बन गई । यह शायद नहीं देखा हो कि बोलते हैं और एक लहर बन जाती है । हमने तो देखा है । पूना के डक्कन कॉलेज में हम गए। वहां देखा कि यंत्र लगा हुआ है । जैसे ही हम बोलते हैं, उस यंत्र पर एक लहर - सी दौड़ जाती है । कभी ऐसा लगता कि कोई सांप दौड़ रहा है । कभी ऐसा लगता कि कोई बिजली की धारा प्रवाहित हो रही है । नाना प्रकार की आकृतियां उसमें बन जाती हैं । हम जो भी बोलते हैं, उसकी तरंगें बन जाती हैं। मंत्र की शक्ति का एक अर्थ होता है, शब्दों का वह चयन जो शक्तिशाली प्रकंपन पैदा कर सके । वे पूरे वायुमंडल को, पूरे आकाश मंडल को प्रकंपित कर सकें। यह मंत्रशक्ति का एक अंग होता है ।
मंत्र में शब्द होता है, अर्थ होता है, उच्चारण होता है और भावना होती है | शब्द, अर्थ, उच्चारण और भावना — मंत्र-शक्ति के ये चार अवयव हैं । पहली बात है कि मंत्र की साधना करने वाला व्यक्ति इस बात को जानता है। कि किन शब्दों का चयन करना है । थोड़ा-सा गलत होता हैं तो मन्त्र हानि भी बहुत पहुंचाता है । शब्दों का चयन गलत हो गया, बहुत नुकसान कर -देगा और शब्दों का चयन ठीक हुआ तो बहुत कल्याणकारी बन जाएगा । • अर्थ का बोध भी होना चाहिए कि मन्त्र का अर्थ क्या है ? तीसरी बात है उसका उच्चारण सही होना चाहिए । उच्चारण में गड़बड़ी भी बहुत कठिनाई पैदा करती है । अगर एक ही प्रकार के प्रकम्पन पैदा नहीं होते, बीच में धार टूट जाती है, तरंग की जितनी लम्बाई होनी चाहिए वह नहीं होती, -बीच में टूट जाती है तो वह शक्ति पैदा नहीं होती । चौथी बात है उसके -साथ श्रद्धा और भावना का योग होना चाहिए। प्राथमिकता की दृष्टि से
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