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________________ २७२ एकला चलो रे उसी पाप का यह परिपाक है। आज से हम यह संकल्प करें-बड़ी मछली छोटी मछली को नहीं खाएगी। सब मछलियां आकुल-व्याकुल थीं, भयभीत थीं । सबने यह प्रस्ताव मान लिया । दो घंटे तक आतिशबाजी का कार्यक्रम चला । भयंकर विस्फोट समाप्त हआ। आकाश में उछलने वाली चिनगारियां बन्द हुई। प्रलय का दृश्य समाप्त हो गया। सभी मछलियां भयमुक्त हो गई। जैसे ही भय मिटा, बड़ी मछलियां छोटी मछलियों पर झपटीं और उन्हें निगल गईं। जिस बड़ी मछली ने यह प्रस्ताव रखा था, उसी ने सबसे पहले छोटी मछलियों को खाना शुरू कर दिया । यह परिस्थिति के आधार पर होने वाला बदलाव है। यह यथार्थ में बदलना नहीं है । क्या समाज में ऐसा नहीं हो रहा है ? जब कोई कठिनाई या परिस्थिति सामने आती है, तब आदमी अपने आपको बदलता है। जैसे ही कठिनाई समाप्त हो जाती है, परिस्थिति बदलती है, तब आदमी मूलरूप में आ जाता है । सारा परिवर्तन समाप्त हो जाता है । जब व्यक्तियों की धरपकड़ होती है, सरकार का रुख कड़ा होता है, तब आदमी भय से कुछ बदलता है। सारा समाज दूध-धुला-सा हो जाता है । यह भय की परिस्थिति से होने वाला बदलाव है । कुछ वर्षों पूर्व जब 'अष्टग्रह' का आतंक छाया था, तब मृत्यु के भय से हजारों-हजारों व्यक्ति बदले थे । जीवन का सारा क्रम बदल गया था। अष्टग्रह का जब कोई प्रभाव दृष्टिगत नहीं हुआ, भय मिटा और आदमी मूल का बन गया । सारा परिवर्तन मिट गया। यह वास्तविक बदलना नहीं है, परिस्थिति के कारण बदलना है। ___ध्यान की प्रक्रिया से जीवन बदलता है । यह परिस्थिति से होने वाला बदलाव नहीं है, विवेक से होने वाला बदलाव है । यह यथार्थ का बदलना है। आदमी बदलता है। उसकी धारणाएं बदलती हैं, मान्यताएं बदल जाती हैं, जीवन की दृष्टि बदल जाती है । जब तक जीवन की दृष्टि नहीं बदलती, तब तक बाध्यता का बदलना होता है । जब जीवन-दृष्टि बदलती है, तब स्थायी बदलना होता है । इस बदलाव के बाद आदमी कभी बुरा आचरण नहीं कर सकता, दूसरों को नहीं सता सकता। जिस दुनिया में हम जी रहे हैं, उसमें सब प्रकार के लोग हैं। अच्छे लोग भी हैं और बुरे लोग भी हैं। हिंसा में विश्वास करने वाले लोग भी हैं और अहिंसा में विश्वास करने वाले लोग भी हैं । संग्रह में विश्वास करने वाले भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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