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हम श्वास लेना सीखें
मेरे सामने कोई पचास वर्ष का मादमी बैठा हो और मैं उससे कहूं कि तुम रोटी खाना सीखो, पानी पीना सीखो, कसा अटपदा-सा लगेगा। वह सोचेगा कि कौन-सी बड़ी बात कह दी, कौन-सी दर्शन की गुत्थी को सुलझाने की बात कही कि रोटी खाना सीखो और पानी पीना सीखो। यह तो हम सब जानते हैं । यदि यह नहीं जानते तो इतने वर्ष आते ही नहीं । अगर पानी पीना नहीं जानते तो पचास वर्ष तो क्या, पांच वर्ष भी नहीं, पांच महीने भी नहीं आते । हर आदमी, जो पचास वर्ष तक जीता है, वह रोटी खाना जानता है और पानी पीना जानता है, इसीलिए पचास वर्ष तक जी रहा है। नहीं तो कैसे जीता? कभी नहीं जी पाता। उस व्यक्ति को यह कहा जाए कि तुम श्वास लेना सीखो और भी अटपटा लगेगा। बड़ा विचित्र लगेगा। यह कोई सीखने की बात है ! जब बच्चा जीना शुरू करता है तो श्वास के साथ जीना शुरू करता है। श्वास हमारे जीवन का लक्षण है। जो श्वास लेता है वह जीता है। जो श्वास नहीं लेता उसे मृत घोषित कर दिया जाता है। जीवित में और मृत में क्या अन्तर होता है ? अन्तर यही होता है कि जब तक धौंकनी चलती है, आदमी जीवित कहलाता है और जब श्वास बन्द हो जाता है आदमी मर जाता है। श्वास के बिना प्राणवायू नहीं मिलती और प्राणवायू के बिना जीवन नहीं चलता । यदि किसी आदमी की कोशिकाओं को ऑक्सीजन न मिले, प्राणवायु न मिले तो दस सेकण्ड के बाद आदमी मूच्छित हो जाता है, फिर सचेत नहीं रह सकता, सावधान नहीं रह सकता। शरीर की हर कोशिका को काम करने के लिए ऑक्सीजन चाहिए, प्राणवायु चाहिए। वह मिलता है श्वास के साथ । यदि श्वास बन्द हो जाए तो सब कुछ गड़बड़ा जाए, सारा शरीर का तंत्र गड़बड़ा जाता है। जब श्वास की कमी होती है तब ऑक्सीजन की नलियां लगाकर कृत्रिम श्वास दिलाया जाता है। फिर सीखने की बात क्या है ? न रोटी खाना सीखना है, न पानी पीना सीखना है
और न श्वास लेना सीखना है । जो अपने आप में होने वाली बातें हैं, जो नैसगिक हैं, निसर्ग से होने वाली घटनाएं हैं उनके लिए सीखने की क्या जरूरत
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