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एकला चलो रे
चढ़कर बेईमानी चल रही है । सत्य के आधार पर असत्य और अहिंसा के आधार पर हिंसा चल रही है । यदि सारे हिंसक बन जाएं तो हिंसा अधिक नहीं चल सकती ।
हम इस बात का गहराई से चिन्तन करें कि सामाजिक स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त आवश्यक है सत्य की निष्ठा, पराविद्या की निष्ठा । अपरा पर ही नहीं रहना है । उस पर अटकने का परिणाम भयंकर होता है । अपरा और परा का सन्तुलन बना रहे, भौतिकता और आध्यात्मिकता का सन्तुलन बना रहे । हम परम को भी देखें, अपरम को भी देखें । सत्यनिष्ठा रचनात्मक दृष्टिकोण की पांचवीं उपलब्धि है ।
कहने वाला, सुननेवाला
रचनात्मक दृष्टिकोण के स्वरूप और उपलब्धियों के विषय में संक्षिप्त चर्चा प्रस्तुत की है । आप लोगों ने वैयक्तिक स्वास्थ्य और वैयक्तिक चरित्र तथा सामाजिक स्वास्थ्य और सामाजिक चरित्र के विषय में सुना । अब कहनेवालों का कोई प्रतिबन्ध नहीं होता सुननेवालों पर । सुनने के बाद दो स्थितियां होनी चाहिए—मनन और आचरण । सुने हुए तथ्यों पर प्रत्येक व्यक्ति मनन करे, श्रद्धा करे और फिर आचरण करे । इसमें सब स्वतन्त्र हैं । कहने वाला स्वतंत्र है तो सुनने वाला भी स्वतंत्र है । कहनेवाला यदि इस प्रबन्ध के साथ कहे कि ऐसा करना ही पड़ेगा तो कहने वाला भी भ्रम में है और सुननेवाला भी भ्रम में है । कहनेवाले का प्रयोजन तब पूरा हो जाता है जब वह अपनी बात पूरे रूप में कह डालता है। इसके बाद सुनने वालों की सीमा प्रारम्भ होती है । वे भी पूर्ण स्वतन्त्र हैं । —जो उन्हें अच्छा लगे, उस मार्ग का अवलम्बन लें। एक मार्ग है वैयक्तिक और सामाजिक बीमारी का । दूसरा मार्ग है वैयक्तिक और सामाजिक स्वास्थ्य का । ये दो मार्ग हैं । दोनों मार्ग बहुत दूर तक जाते हैं । दोनों समानान्तर रेखा की भांति चलते हैं । साथ-साथ चलते हैं पर कहीं मिलते नहीं । अब मार्ग के चुनाव का प्रश्न आप पर छोड़ देता । जो मार्ग आपको अच्छा लगे, उसको अपनाएं । चुनाव की यह स्वतंत्रता व्यक्ति की अपनी स्वतंत्रता है ।
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