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________________ ६४ एकला चलो रे सारे भांड आंवे में पक रहे हैं । कहीं वर्षा आ गई तो सब नष्ट हो जाएंगे । प्रार्थना करती हूं कि वर्षा न आए। आप भी यही प्रार्थना करें। पिता असमंजस में पड़ गया। उसने सोचा-अब क्या करू ? एक बेटी कहती है कि मेरे लिए भगवान से प्रार्थना करें कि बरसात आये और एक कहती है, भगवान् से प्रार्थना करें कि बरसात न आए। वह बेचारा किसके लिए क्या प्रार्थना करे । उसने सोचा-ऐसे तो काम नहीं बनेगा। उसने दोनों लड़कियों को बुलाया और कहा-तुम चाहती हो कि वर्षा आए और यह चाहती है कि वर्षा न आए । एक काम करो, तुम दोनों बहनें हो। तुम दोनों के मन में विरोधी विचार नहीं होने चाहिए। एक-दूसरे के प्रति अमंगल की भावना न पनपे । एक उपाय सुझाता हूं, तुम एक काम करो कि वर्षा आ जाये, अच्छी खेती हो तो आधा हिस्सा इस लड़की का होगा । वर्षा न आए और खेती न हो सके और तुम्हारा आंवा ठीक पके तो आधा हिस्सा इस लड़की का होगा । दोनों ने स्वीकार कर लिया। दोनों की एकदूसरे के प्रति अमंगल की भावना समाप्त हो गई। स्वार्थों का जहां संघर्ष होता है, स्वार्थों का टकराव होता है, वहां भी समीकरण की बात सम्भव हो सकती है। ऐसा नहीं कि समीकरण न हो सके । किन्तु जब समीकरण नहीं होता, तब स्वार्थ टकराते रहते हैं और झगड़े चलते रहते हैं। इसी प्रकार मान्यताओं का टकराव होता रहता है। वहां भी समीकरण की बात बन सके तो बहुत अच्छा होता है। ऐसा हुआ है। पुराने जमाने में अनेक वार ऐसी स्थितियां आयीं और वहां समीकरण किया गया, बहुत अच्छी स्थिति बन गई। महाराज जयसिंह और सिद्धराज-ये गुजरात के दो प्रसिद्ध शासक हुए हैं। ये समन्वयवादी थे। आचार्य हेमचन्द्र उनके गुरुतुल्य थे। एक बार महाराज सिद्धराज शिवमन्दिर में गए। आचार्य हेमचन्द्र साथ थे। वहां किसी व्यक्ति ने कहा कि आचार्य हेमचन्द्र आपके साथ तो हैं पर ये शिव की स्तुति नहीं करते । महाराज ने पूछा-आचार्यवर ! क्या आप शिव की स्तुति कर सकते हैं ? उन्होंने कहा-क्यों नहीं कर सकता। कर सकता हूं। उन्होंने तत्काल महादेव पर चवालीस श्लोक लिखे और प्रथम श्लोक में उन्होंने कहा "भवबीजांकुरजनना रागाद्याः क्षयमुपागताः यस्य । ब्रह्मा वा विष्णुर्वा. हरो जिनो वा नमस्तस्मै ॥' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003058
Book TitleEkla Chalo Re
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages320
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size14 MB
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