________________
दोहा
अल-बलड़ अनुचित अधिक, खाणो करै खराब । 'चम्पक' उदर उणोदरी, गुणकरणार गुलाब ! ॥१॥
आवै ज्यूंही ऊर दै, खाऊ लेण खिताब | 'चम्पक' चेतो बापर गड़बड़ हुयां गुलाब ! |२||
इमरत सो करसी असर, लूखी रोटी राब । 'चम्पक' भूख बिना भख्यां, गोटाइ गरल गुलाब ! | ३ ||
ईं ऊमर मैं आमली, आम्बोली मत चाब । 'चम्पक' केरी काचरी, आब गमाय गुलाब ! | 6 ||
उपराथली ज ऊरणो, बे-जर बिना हिसाब । 'चम्पक' चरण रो चकर, गेहलो कार गुलाब ! |५||
ऊंखल, घट्टी, खल, थली, छाज, बुहारी, छाब । 'चम्पक' चूल्हें बैठणो, अशुभ गिणे रे गुलाब ! | ६ ||
एक हाथ है एकलो, दो रो दूणो दाब । 'चम्पक' एकै एक मिल, ग्यारह हुवै गुलाब ! ॥७॥
ऐकान्तिक अत्याग्रह, ताण्यां बधे 'चम्पक' समझोतो सदा, गमतो लगे
Jain Education International
ओथाणा नींबू-मिरच, अ आचार 'चम्पक' चीजां तामसी गुण के करें ?
तिजाब ।
गुलाब ! |5||
निकाब | गुलाब !18 ||
गुलाब गुणचालीसी
For Private & Personal Use Only
६६
www.jainelibrary.org