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स्याणां री स्याणप
सागर ! स्याणप स्वयं री, काम पड्यां दै काम । है साहजी री सीख रो, फलसै तक परिणाम ॥१॥
अन्त-अन्त स्याणप करै, सागर! कसबड़ हाय । कर्य-करायै काम नै, करदै गतरस प्राय ।।२।।
सागर ! होणो ही चहै, हद महाजनी हिसाब ।। अति कसबड़ के काम री, (जो) करदै काम खराब ॥३॥ सागर ! सह लेणो स्वयं, समय पड्यां नुकसाण । पण शत्रु नै भी सलाह, हित की देणी जाण ।।४।। साच झूठ रो है नहीं, सागर ! सही निवेड। तो तूं के ताणी करै, छुटपुट छेड़ा-छेड़ ॥५॥
३६ आसीस
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