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________________ ६५ नाभि हमारी जड़ है Care कीबात है | दडीवे का एक ग्रामीण आया । कुंभार - प्रजापति । बूढ़ा आदमी । पर था रसीला रंगीला । पहुंचा हुआ। बात ही बात में उसने पूछा - सन्तो ! पेड़पौधे, घास-फूस सबके जड़ होती है। जड़ के बिना कोई नहीं पनपता । बताओ देखें, इस शरीर की जड़ क्या है, कहां है ? बड़ा विचित्र प्रश्न था । मैं हैरान था । शरीर की जड़ कहां बताऊं ? पैर ? नहीं-नहीं - पेट ? बूढ़े ने उलझा दिया । वह गांव का अनपढ़ | ऊंची धोती, फटा अंगरखा, पुरानी-सी पगड़ी। मैंने सहज उत्तर दिया- बाबा, समझ में नहीं आया, भला शरीर के भी कोई जड़ होती है ? हां, शरीर स्वयं जड़ है, यह तो ठीक है ? मेरा उत्तर सुन भाईजी महाराज को झुंझलाहट आयी । उन्होंने फरमाया गई अकल गावन्तरे, सागरिया ! कीं सोच, नाभि जड़ नर-देह री कहदै निःसंकोच ॥" कहां उलझ गया ! क्या नाभि हमारे शरीर की जड़ नहीं है ? जब हमारे शरीर के अवयव भी नहीं फूटे थे, क्या हम नाभि से शक्ति नहीं पा रहे थे ? मां के पेट में नाल ही हमारे पोषक तत्त्वों का स्रोत था । उनका सहज सात्विक उत्तर मेरे लिए प्रकाश बन गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only संस्मरण ३१५ www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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