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________________ ५७ गंगापुर में दो संवत् वि० सं० २०१६ का राजनगर मर्यादा- महोत्सव सम्पन्न कर गुरुदेव भाणा, जतपुरा होते हुए फाल्गुन शुक्ला १२ को गंगापुर पधारे। होली के बाद गंगापुर वालों का आग्रह था कि लम्बा विराजना हो । आचार्यप्रवर ने फरमाया - चम्पालाल जी स्वामी ( भाईजी महाराज) को राजी करो । इन्होंने पहूने वालों को लगा दिया है । गणेश कूकड़े का समर्थन भाईजी कर रहे हैं । गंगापुर वालों ने भाईजी महाराज से कहा । मुनिश्री ने फरमाया - मैं तुम्हारे अंतराय नहीं देता, पर ये तुम्हारे, अड़ोस-पड़ोस में बसने वाले भी तो तुम्हारे ही छोटे भाई हैं, बड़ा भाई, भाई को न देखे, क्या यह ठीक है ? कुछ संतोष करो, बांट-बांटकर खाना सीखो । गणेश कूकड़े की आंखें भर आईं । आचार्यश्री जी पसीजे । पुर पहुने पधारने का आदेश देते हुए फरमाया-'चम्पालालजी स्वामी जिसके पक्ष में खड़े हो जाते हैं, वह मुकदमा जीत जाता है। गणेश ने बड़ा वकील खड़ा कर लिया । मेरा मन बिलकुल नहीं था, पर विवशता भी एक होनहार है और सबकी बात टाल सकता हूं पर भाईजी महाराज का आग्रह तो मैं भी नहीं टाल सकता ।' 1 चैत बदी पंचमी को विहार हुआ । नांदसा, स्योरती, महेन्द्रगढ़, कारोई, पुर, गाडरमाला होकर पहुना पधारे । गणेशजी कूकड़ा ने अभिनन्दन पत्र में पढ़ा'इस अवसर पर हम ज्येष्ठ भ्राता सेवाभावी मुनिश्री चम्पालाल जी स्वामी का हार्दिक आभार मानते हैं जिनके अपूर्व सहयोग ने आपश्री के श्री चरणों को इस धरती की ओर आने के लिए बाध्य किया ।' ऊंचा, मरोली, जाडाणा, भीमगढ़, लांगच, चड़ावड़ी, रास्मी, मान्यास, रेवाड़ा, स्योनाणा, लाखोला 'होकर चैत कृष्णा अमावस्या को पुनः गंगापुर पधारना हुआ । भाजी महाराज ने आते ही फरमाया Jain Education International For Private & Personal Use Only संस्मरण ३०१ www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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