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श्री भाईजी महाराज आचार्य प्रवर से व्यवस्था देने का निवेदन करने पधारे । कोई दसेक कदम गये होंगे, स्वर देखा, वापस मुड़े।
डॉक्टर बोले-'क्यों साहब ! क्या सोचा?'
भाईजी महाराज ने कहा-'डॉक्टर ! मेरे मन में आया, इन सबने प्रयत्न कर लिया, मैं भी देखू तो सही यह आंत क्यों नहीं चढ़ती ?'
मुनिश्री विराजे । स्वामीजी का स्मरण किया और आंत पर हाथ का दबाव दिया। सहारा लगा कि आंत खट, ऊपर चढ़ गयी। मुनि खूबचन्द जी बोले'जिला दिया।'
___ डॉक्टर रेउ अचंभित थे। उन्होंने कहा-~भाईजी महाराज ! आप में तप का बल है। सन्तों ने कहा-पुन्यवान के हाथ में ही करामात होती है। भाईजी महाराज ! आपने क्या अटकल लगायी? और भाईजी महाराज कह रहे थे
'अटकल-पटकल कुछ नहीं, कल बाबैं को नांव ।
जस जद मिलणे रो हुए, (तो) 'चम्पक' लागें दांव' सनते ही आचार्यप्रवर स्वयं पधारे और फरमाया-चम्पालालजी स्वामी! 'यशः पुन्यैरवाप्यते'-'यश भी भाग्य से मिलता है।'
२६४ आसीस
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