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पूज्यता तक पहुचाने वाले तो गुरु हैं
उदयपुर से बिहार कर श्री भाईजी महाराज राजनगर पधारे । मर्यादा-महोत्सव की व्यवस्थाओं का जायजा ले २०१९ पौष शुक्ला अष्टमी को बोरज होते हुए केलवा पहुंचे।
_केलवा से तेरापंथ का इतिहास जुड़ा पड़ा है। यहां का अन्धेरी ओरी वाला मंदिर तेरापंथ का उद्गम-स्थल है। आचार्य भिक्षु की कठोर, सत्य-परीक्षा और केलवा ठाकुर मोखमसिंहजी का प्रभावित होना जन-विश्रुत है। केलवा-ठिकाने की ख्यात-बही के अनुसार आचार्य भिक्षु का तेरापंथ भाव-दीक्षा के बाद पहला भोजन ग्रहण (गोचरी), तीन दिन के उपवास का पारणा भी रावले के अन्न से हुआ था । जयाचार्यश्री द्वारा अंकित लकड़ी की एक कामी (फुट) जिस पर लिखा है'भिक्षु छतारी छै' केलवे ठिकाने से ली गयी लकड़ी की है, जो आज भी लाडनं पुस्तक भंडार में सुरक्षित है । केलवा तब से अब तक तेरापंथ-संघ के लिए श्रद्धानत है। इसका जीता-जागता प्रमाण तेरापंथ द्विशताब्दी समारोह में हमने अपनी आंखों से देखा है। श्री भाईजी महाराज का पधारना केलवा के लिए अमित उल्लास लेकर हुआ। सैकड़ों-सैकड़ों छात्रों और महिलाओं के साथ जन-समूह ने स्वागत किया।
रावले के चौक में प्रधानाध्यापक श्री पुरी, केलवा ठाकुर श्री दौलतसिंहजी एवं चाचा ठाकुर रामसिंहजी के बाद कवि सेंसमलजी कोठारी ने कुछ प्रशस्ति पद्यों के बीच कहा
इक चम्पा हरि सिर चढ़े, इक मन हरत विकार।
मनहर चम्पालाल को, बन्दूं बारम्बार ॥ कवि की युक्तियुक्त बात से जनता मुखातिब हो उठी।
संस्मरण २८६
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