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तुमने रोग को तो भीतर बण्डल में बांधकर रख छोड़ा है। पगले ! एक बात कहं ? सागर भाई ! ऐसी कविता भविष्य में कभी मत बनाना।
कविता कुदरत की कला, सागर! मिल्यो सूयोग, (पर) आइन्दा अपशब्द रो, फेर न करी प्रयोग।
और वह कविता फाड़ देने के बाद मैं क्रमशः ठीक होता गया। सरदारशहर चातुर्मास उतरते ही आचार्यप्रवर के साथ दस दिन में २०० मील की पदयात्रा कर दिल्ली-यूनेस्को सम्मेलन में सम्मिलित हो गया।
२७८ आसीस Jain Education International
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