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________________ कर्यां पड्यो है, रात्यूं मरतो मरसी नी।' सोहन 'सर' आये। मुझे हाथ पकड़कर बिठा दिया। ज्यों ही हाथ छोड़ा कि मैं लुढ़क गया। अब सबको पता चला। सेठ सुमेरमलजी दूगड़ आये । नब्ज देखी। स्थिति नाजुक थी। भाई को भेजकर पता लगाया पर दवा का बक्सा गाड़ी में चढ़ा दिया था। असूजती दवा काम नहीं आती, अब क्या किया जाए । सन्त गये कहीं से सत्य-जीवन और कुछ अर्क लाये । लौंगसौंठ का अर्क और सत्य-जीवन दुगुनी मात्रा में दिया गया। सूर्यास्त के आसपास मुझे चेत आया। सामने रात । वह जेठ की भयंकर गर्मी। सोहनलालजी स्वामी (चूरू) आदि सन्तों ने रात्रि-जागरण किया। सुबह तक मैं उठने लायक हुआ। काल-रात्रि को पार कर दूसरे दिन विहार हुआ । विहार केवल कहने मात्र का था। मैं दो सन्तों के कन्धों पर अपना पूरा शरीर का वजन डाले, घसीटते पैरों से वह रास्ता तय कर रहा था। बार-बार सत्य-जीवन और अर्क देते गये । आधी होशीबेहोशी में पड़िहारा ले लिया। सेठ सुमेरमलजी दूगड़ अपने नुक्शे आजमा रहे थे। सबकी सब दी जाने वाली ओषधियां बेकार । फिर एक उल्टी हुई। मैं बेहोश हो गया। सन्तों ने उठाकर मुझे बिस्तर पर लिटाया । मकरध्वज की मात्रा दी गयी, पर कोई असर नहीं। उपचार करते दिन बीता। रात आयी । अब बदला दौर । सन्निपात प्रारम्भ हुआ। हाथपांवों में वांइटे (ऐंठन) शुरू हुए। आचार्यप्रवर दर्शन देने पधारे। छोटे सन्तों को भक्तामर का पाठ सुनाने का आदेश हुआ। कुछ मुनि पाठ सुनाने लगे। श्रावकों ने अपनी तैयारी प्रारम्भ की। विचार-विमर्श चला। मनोकामना अन्त्येष्टि-क्रिया का खाखा जमाया। सेठजी नाड़ी हाथ में लिये बैठे थे। एक ठबका आया है, अगला देखें कितनी देर बाद आता है, देख रहे थे। बीसों लोगों ने रात जगाई । पर प्रकृति को जो मंजूर होता है, वही होता है। रात बीती । प्रातः हुआ, उपचार फिर चालू हुए। सेठ सुमेरमलजी अनुभवी थे। उन्होंने मकरध्वज की चौगुनी मात्रा एक साथ दिलवाई। मानो बुझते दीपक में तेल उड़ेल दिया हो, ज्योति जल उठी । मुझे लगभग बारह घण्टे बाद होश आया। धीरे-धीरे मैं ठीक होने लगा। गुरुदेव के साथ-साथ हम रतनगढ़ पहुंचे। वैद्य भगवतीप्रसाद को दिखाया। निदान उनका यथार्थ हुआ करता था । नवोदित वैद्य गोस्वामी धनाधीशजी की दवा प्रारम्भ हुई। न चाहते हुए भी भाईजी महाराज ने मुझे रतनगढ़ रखा। आचार्यप्रवर सरदारशहर पधारे । एक महीने के लम्बे उपचार के बाद चलने-फिरने लायक हुआ। हम तीनों संत-मैं, वसंत और मणिमुनि,सरदार शहर पहुंचे। वि० सं० २०१३ का चातुर्मास प्रारम्भ होने के दिन से फिर अस्वस्थ हुआ। लगभग तीन महीने मैं परेशान रहा। परिचारक साथी और वैद्य-डॉक्टर प्रयत्न कर-करके थक गये । सेठ २७६ आसीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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