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बखार में नित्य नये उतार-चढ़ाव आते । मानसिक अस्त-व्यस्तता और परेशानी बढ़ती। सन्त मेरा मन लगाने का यत्न करते । भाईजी महाराज का जी तो था जावरा और शरीर था आचार्यश्री के साथ यात्रा में। बार-बार आश्वासन के शब्द मिलते, पर मन नहीं लगा सो नहीं ही लगा । उद्विग्नता दिन-प्रति-दिन बढ़ती गयी। जैन युवक समरथमलजी आदि-जो सर्वोदयी विचारधारा के थे-घण्टों हमारे पास बैठते । वयोवृद्ध श्रावक जडावचन्दजी पगारिया बार-बार खबर लेते, पूछताछ करते। मुनि मणिलालजी एक तो छोटे थे, दूसरे शरीर-सम्पदा-सम्पन्न, अतः लोगों को उनसे बोलने का चाव रहता । भाई फकीरचन्दजी तो मणि-मुनि के पीछे लट्ट हो गये । गोचरी ले जाते । पानी को जाते तो वे साथ रहते।
एक दिन मैंने जाने की तैयारी कर ली। रात का समय था, अचानक बुखार १०५ से गिरा और ६५ आ गया। होश-हवाशगुम । हाथ-पांव ठण्डे बरफ-से । मुनि मणिलालजी दिलगीर हो गये । सत्तरह वर्ष के बच्चे तो थे ही । उस रात वे शायद मिनट-भर के लिए भी मुझे छोड़कर नहीं हटे। उन्हें बहम था कि मैं छोड़कर गया कि ये गये । रात को दस बजे के बाद वहां कहां डॉक्टर ? कहां वैद्य ? कौन संभाले? कासीद ख्यालीलाल गया। धर्मशाला के बाहर एक दांतों के डॉक्टर थे, सिन्धी भाई। वे पानी भरने भीतर आया-जाया करते थे। सन्तों ने उनसे परिचय बनाया था। बेचारे सज्जन थे। कभी कदाच दिन में आ जाया करते थे। सूचना मिलते ही वे आए । देखा, काम तो समाप्ति पर था । आखिर डॉक्टर तो थे ही। उन्होंने कहा-'जैन-मुनि रात को कुछ लेते नहीं, अब उपचार करूं भी तो क्या? एक काम करो सन्तो! कम्बल के टुकड़े से इनके हाथ-पैरों में गरमी पैदा करो।' वैसा ही किया। कोई दो घंटे बाद मुझे होश आया। उस रात मणिलालजी ने लगभग जागरण किया । सन्तों ने बहुत समझाया। जब मैं बोलने लायक हुआ, मैंने भी कहा-'मैं अब ठीक हूं, तुम सो जाओ। बात मणिमुनि के गले नहीं उतरी। पूरी रात उन्होंने मेरे बिछौने के पास बैठकर काटी। __मैं मरते-मरते बचा । अठारह दिन रुककर जब चलने-फिरने लायक हुआ, विहार किया। ज्यों-त्यों भीलवाड़ा-माघ-महोत्सव में हम सम्मिलित हो सके। स्वास्थ्य डिग-मिग डिग-मिग करता चला । सन्तों के सहयोग से मैं आचार्यप्रवर के साथ-साथ छापर पहुंचा।
सहसा रात को एक वॉमिट (कै) हुई । बेचैनी की परवाह न कर दूसरे दिन आठ मील 'रणधीसर' पहुंचे। दिन-भर जी घबराता रहा । लौंग-गोली के सहारे काम चलाया। सायंकाल चार-पांच बजे के बीच अचानक बेहोशी आ गयी। सन्तों ने सोचा, नींद आयी होगी । भाईजी महाराज आहार करने पधारे। मुझे आवाज दी। जवाब देता कौन? सन्त सोहनलालजी स्वामी (सरवालों) को भाईजी महाराज ने फरमाया-'जाओजी! उसे उठा लाओ।' 'कुमाणस अवार तो मिस
संस्मरण २७५
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