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________________ कहा, बोलो, तो मौन तोड़ते हुए बोले 'आछो सोच्यो आप पण, म्हारै जची न हाल। (अ) तीन टाबर एक-सा, 'चम्पक' लागे चाल ॥ इतना स्पष्ट कोई बिरला ही कह सकेगा। यह कटु सत्य आचार्यश्री को भी अप्रिय लगा। बात समाप्त हुई। ससंघ गुरुदेव बम्बई पधारे। चातुर्मास सानन्द पूरा हुआ। चर्च गेट आचार्यश्री बिराज रहे थे। रतनगढ़ से समाचार मिला । आचार्यश्री स्वयं स्तब्ध रह गये। अन्तर गोष्ठी बुलायी गयी। रहस्योद्घाटन किया। आचार्यश्री का आज जैसा खिन्न चेहरा हमने पहले नहीं देखा । एक अन्तर आघात के साथ निःश्वास फेंकते हुए आचार्यश्री ने फरमाया'अब बताओ! युवापीढ़ी का विश्वास कैसे हो ? रतनगढ़ से मोहनलाल, भैरुदान और चन्द्रकांत तीनों रात को लापता हो गये हैं । चम्पालालजी स्वामी की पहचान ठीक निकली । मेरे साथ ऐसा विश्वासघात पहली बार हुआ है।' हमने सुना-भाईजी महाराज ने निवेदन किया। आप इतना क्या विचार करवाते हैं-उनकी गति, उनका कर्म । करेगा सो भरेगा । महाराज! 'कमी न राखी आपतो, कृपा करायी धाप । 'चम्पक' आगे आगलां रा अपणा पुन-पाप' । संस्मरण २६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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