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________________ ४३ अन्दाजा सही उतरा स्वभावगत भाईजी महाराज के कुछ अंदाजे अलग ही थे । आदमी की पहचान में उन्होंने शायद ही कभी गलती खायी हो । अकसर चाल के आधार पर वे व्यक्ति की प्रकृति पहचाना करते थे। इस अर्थ में उनके अलग ही अनुभव थे। इसलिए कई लोगों से तो उनकी कभी पटी ही नहीं। वैसे सभी तरह के लोग उनके इर्द-गिर्द आते बैठते । किससे कितनी बात करना, यह भी उनका अपना एक ढंग था । वे मेलजोल सभी से रखते थे। गांव के उन नामी-नामी नम्बरी आदमियों से उनका अपनत्व घरेल-जैसा होता। वे फरमाया करते-'समाज में सब शक्तियों की आवश्यकता है । जहां नागाई काम आती है, वहां ये ही काम के हैं । शरीफी वहां क्या करेगी ? अनादर किसी का भी मत करो। दुश्मन को भी आदर से जीतो । रबाब से भी लिहाज ज्यादा काम करता है। ये कुछ आदर्श-सूत्र थे भाईजी महाराज की लोकप्रियता के। वि० सं० २०१० सोजत रोड की बात है। आचार्यप्रवर की भोजन-व्यवस्था सम्पन्न कर भाईजी महाराज उठने लगे। आचार्यश्री ने फरमाया-चम्पालाल जी स्वामी ! मोहनलाल (लाडनूं) को थली भेजने का सोचा है। भाईजी महाराज हाथ जोड़कर बोले-बड़ी कृपा की । साथ...? आचार्यश्री-साथ तो भै रुदान और चन्द्रकांत । भाईजी महाराज क्षण भर रुककर बोले-होगा तो वही जो आपकी मरजी होगी, पर मेरे नहीं जंची। __ आचार्यश्री-क्यों ? मोहनलाल ठीक है । सयाना भी है । वह कहता है इन्हें साथ भेज दिया जाए तो मेरा मन लग जाएगा। अतः यह सोचा गया है । आप तो बहमी हो जी। विश्वास भी करना चाहिए आदमी का । भाईजी महाराज कुछ क्षण चिन्तन की मुद्रा में रहे और जब आचार्यश्री ने २६८ आसीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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