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सागर राजस्थानी और हिन्दी में गीत भी लिखते हैं, जिनका गुंजारव दीर्घकाल तक होता रहता है। ___ यह एक मणि-कांचन योग है कि मुनिश्री चंपालालजी (भाईजी महाराज) के काव्य को प्रस्तुत करने वाले श्रमण सागर भी एक उच्चकोटि के कवि और साहित्यकार हैं । इनकी प्रस्तुति में स्वयं एक निखार है जो पाठक को बरबस अपनी ओर खींच लेता है तथा शब्द-सागर में गोता लगाने और अर्थ की ऊंचाई तक उड़ान भरने के लिए बाध्य कर देता है। ___मुझे आज मुनिश्री के मूल-समाधि-स्थल के आसपास बैठे-बैठे इस भूमिका को पूरा करने में परम आनन्द का अनुभव हो रहा है। वे सब गए। सब जाएंगे। वे सुवास छोड़ गए। सभी सुवास नहीं दे पाएंगे। आज भी उनका समाधि-स्थल उनके तैजस परमाणुओं से अनुप्राणित है, ऐसा वहां अनुभव होता है।
उस परम पुनीत आत्मा के प्रति मैं अवनत हूं और उनके ऊर्धारोहण की निरन्तर कामना करता हूं।
मुनि युगल (सागर-मणि) ने मुझे लिखने के लिए चुना, यह उनका वात्सल्य और विश्वास का द्योतक है। मैं भाईजी महाराज के सतत प्रवहमान स्नेहधारा का सिंचन पाकर कृतकृत्य हुआ हूं। अस्तु...
-मुनि दुलहरान
सेवाभावी समाधि-स्थल जैन विश्व भारती लाडनूं ५-२-८८
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