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एक बार ओघड़ कवि चांदमलजी स्वामी ने किसी ऐसे ही प्रसंग पर कहें दिया
'दूध-दही तो रह्यो कठे ही, मिले न पूरी रोटी। चाटां के चन्देरी री औ, हेल्या मोटी-मोटी।'
और चम्पक मुनि ने कहा, बताते हैं
द्रव्य घणा, दाता घणा, (पर) अंतराय अगवाणी,
ढंढण रिषि ने राजग्रही में, मिल्यो न भोजन-पाणी॥' यह दोष राजग्रही या लाडनूं का नहीं, करमों का है-महाराज ! चांदमल जी स्वामी को ढंढ़ण मुनि की उपमा बुरी लगी। वे नाराज हुए और कई दिनों तक अनबोल रहे।
संस्मरण २६
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