SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १० दोस्ती का चिन्ह बचपन बचपन ही तो होता है । उसमें गम्भीरता कहां से आयेगी ? अनुभव छुटपन से परे की बात है । बड़प्पन और शिष्टता, यों तो वंशगत संस्कारों की देन हैं, पर उनका विकास और हास अभिभावकों पर निर्भर करता है । यदि अभिनियन्ता बार-बार बच्चों को सभ्यता की ओर संकेत देता रहता है, तो सहज ही बच्चों के समझ में आने लगता है कि मुझे ऐसा व्यवहार करना चाहिए जिससे मैं भी अच्छा, प्यारा लड़का बन सकता हूं। किसी भी गलती के बाद बच्चे को भूल का अहसास कराना भी एक योग्य शिक्षक की कला है । श्री भाईजी महाराज ने एक अनुभव सुनाते हुए इस ओर इंगित किया कमलपुर में मैं और बालचन्द बोरड़ एक दिन पिछवाड़े बाड़े में खेल रहे थे । आज हममें राजपूती जागी थी। दोनों के हाथों में बांस की लम्बी-लम्बी खापटियां थीं। हम बहादुर योद्धा बनकर पट्टा खेलने चले थे। बांस की खापटियां हमारी बनावटी तलवारें थी । हम उछल उछलकर एक-दूसरे पर वार कर रहे थे । सामने वाले का घातक वार बचाकर अपना कौशल दिखाते दिखाते अचानक मेरी तलवार (खापटी) असावधानी से बालचन्द के हाथ में जा चुभी । बस, अब क्या था खून ही खून । कुएं पर जाकर हमने पानी से हाथ धोया पर खून नहीं रुका। पट्टी बांधी तो खून अधिक चमकने लगा । हम घबराये । दोषी यों तो दोनों ही थे, पर मेरी गलती बड़ी थी । मैं डालचन्दजी के पास गया और सच्ची-सच्ची बात कह दी । वे सत्य को बहुत पसंद करते थे । उपालंभ के बदले उन्होंने मुझे थपथपाया और कहा- कोई बात नहीं, लग गई तो लग गयी। बहादुर योद्धा क्या खून देखकर घबराते हैं । चम्पू पर आगे ध्यान रखना, ऐसा खेल कभी नहीं खेलना चाहिए। नहीं तो आंख में लग तो ? देख ! बालू के लगी कोई चिन्ता नहीं, पर अभी तेरे लग जाती तो भाई २१२ आसीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy