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________________ सकल कुशल संवाद, थारै ही परताप स्यूं। फिर-फिर आवै याद, साद सुवत्सलता मर्या ॥२०॥ माजी! कृपा विशेष, बणी सवाई नित रहै। बातां से अवशेष, मिल्यां कहण रा भाव है ॥२१॥ मातृ-भक्त अनन्य, 'चम्पक' चित चरणां वसै । वो दिन ऊगै धन्य, जद मिलणो होसी सुखद ॥२२॥ दोहा तत्रस्थित सतियां भणी, वंचे चम्पक रेस । सुखसाता सब राखज्यो, हिलमिल हेत विशेष ॥२३॥ समझदार नै है सदा, घणो इशारो एक । जाझी सेवा साझज्यो, जागृत राख विवेक ॥२४॥ सत्यां ! ज्यादा के लिखू, सो बातां इक बात। माजी मन राजी रहै, ज्यूं करज्यो सहु साथ ।।२५।। सोरठा श्रमण रु हंस गुलाब, हीरो मणी वसन्त युत । सविनय आदर-भाव, पूछ सुखसाता प्रगट ॥२६॥ स्वीकृत करो प्रणाम, अन्तर आशिर्वाद द्यो। आवां गण-गणि काम, चम्पक' म्हे चित चाव स्यूं ॥२७।। १७३ आसीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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