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________________ बम्बई रै अनुरूप, होयो पुज्य पधारणो। लोकां पण धर चूंप, लाहो सेवा रो लियो ॥८॥ बण्या घणां प्रोग्राम, देख्यां जी-सोरो हवै। माह-मोच्छव रो काम, सारां मै हद लेयग्यो ॥६॥ ही सगली तजबीज (पण) कमी आपरी खटकती। मंजुल मूर्ति घणीज, रह-रह चेतै आंवती ॥१०॥ अनुभव ही अनुमान, प्रख्याती मै के कहूं?। लारै फिरै निधान, होणहार पुण्यवान कै ॥११॥ श्री गुरुराज प्रताप, सुखसाता वरत अठ। माजी ! घणीज आप, चित्त-समाधी राखज्यो ॥१२॥ करज्यो पर-उपकार, विचर-विचर गांवां नगर । भगर सखर सुखकार, सदा स्वास्थ्य री साधना ॥१३॥ वृद्धावस्था पेख, सेवा रो लाहो लियो। ओरुं अवसर देख, धणी घणी करसी कृपा ॥१४॥ करो सतत स्वाध्याय, आं थांरै अनुरूप है। जीवन सफल गिणाय (जद) मै भी करस्यूं अनुकरण ॥१५॥ इण ऊमर रै माह, ओ साहस, संयम-निमल । राखो मन उत्साह, धन्य-धन्य है आपनै ।।१६॥ विरह असह्य अवश्य, (पण) अछो वीरमाता तुम्हे। समझो सकल रहस्य, गाढ़ घणेरो राखज्यो ।।१७।। ले म्हारो अभिधान, थे सुखसाता पूछज्यो। सतियां सहु गणवान, सब नै सोहरा राखज्यो॥१८॥ समाचार सुखकार, सुणां घणां लोगां कनै । हुवै हर्ष अणपार, (पण) म्हांनै चेतै राखज्यो॥१६॥ पद्यात्मक पत्र १७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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