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गणेशमलजी स्वामी (जसोल) की स्मृति में
सोरठा
गहरो गुणी गणेश, गलै सुदी गण मै गड्यो । बल बलवान विशेष, 'चम्पक' चतुरां चित चढ्यो ॥ १ ॥
डायँ हाथ में हाथ, पकड्या दोन्यूं म्हारला । जोर लगा इक साथ, 'चम्पक' कस्यो छुड़ाण नै ||२||
पूंचा जाता टूट, जोर जाय जंबूरी छूट, स्यात्
'चम्पक' आवै याद, बो दिन बीयां को बियां। गुण गणेश साल्हाद, गणि गण रो भारी भगत ॥४॥
लगातो और जो । सिकंजो सिरकज्या ॥ ३ ॥
पूरी ही परतीत, रीत - नीत रो रांगड़ी | बरतेsो विपरीत, नहीं सुहातो संघ स्यूं ॥ ५॥
मुनि जीवण-मुलतान सेवा साझी सांतरी । भल भावी बलवान, टाली 'चम्पक' नहिं टलै ॥ ६ ॥
चढ़े सिराडै काम, जो राखँ शासण - शरण । नित गणेश रो नाम, 'चम्पक' चित चेत करे ||७||
१५६ आसीस
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