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________________ कर्म-भोग समभाव स्यूं, आली कर मत आंख। चम्पा ! बांध्या चीकणा, रोवै क्यूं बण रांक ।। जैन धरम मै संयम री साधना, वीरभाव री साधना है, ई करण ही 'वर्द्धमान' रो नांव 'महावीर' पड्यो। संवेदना रा धनी 'चंपक' मुनि रो हीयो दुखी'र दरदी रैखातर फूल जियालको कंवलो हो तो आपरै करम रूपी वैरी स्यूं लड़ण नै बजर जिसो कठोर भी हो। तप तीखी तरवार करम कटक स्यूं जुध करण । मरण सुकृत भण्डार, सगती साहमो श्रावका ! बां रै खातर कविता आपरै चित्त ने चेतावणैर निरन्तर जागतो राखण रो एक हथियार हो । अर बै आपरी संयम साधना मैं ई रो घणो सांतरो उपयोग कर्यो है औरां को ऐश्वर्य सुख, झांक रांक मत रीक, करणी करता क्यूं तनै, आवै 'चम्पा' छींक ? कैठा कुण सै जलम रा, शेष भोगणा भोग ? 'चम्पा' चुकै उधार, क्यूं बिलखो देख विजोग ? राजस्थानी साहित्य मै सम्बोधन काव्य री एक लम्बी परंपरा रैई है। कवी जो बात कैणी चाव, बा आपरै कोई मर्जीदान रो नांव लेय ने कहवै। जका दोहासोरठा आपां राजिया रा कहेड़ा समझा हां, बै असल मै कृपाराम बारहठ रा राजिया रो नांव ले'र कहेड़ा है । चकरिया, नाथिया, मोतिया रै दूहा-सोरठां रो भी ओई हाल है । भाईजी महाराज भी के ई सन्तां रै सम्बोधन स्यूं दूहा-सोरठा कह्य नै राजस्थानी सम्बोधन काव्य री परंपरा नै आगे बढ़ाई है। भाईजी महाराज री कवितावां मै भाव री ही प्रधानता है, पण भाषा रे निखार अर सबदां रै जड़ाव री निजर स्यूं देखां तो भी 'आसीस' री कवितावां आपरो घणो मोल राखै । मुक्त छन्द रो प्रयोग तो बै घणो सांतरो कर्यो है। चालू मुहावरां रो प्रयोग आप मोकले रूप में कर्यो है । कठ-कठेई तो मुहावरां रैमाध्यम स्यूं जुग री असंग्त्यां रो जीतो-जागतो चितराम खैच दियो है-- डोको फाड़े डांग नै, तिल ले चाल्यो ताड़ । 'चंपक' छिपग्यो छोकरां! राई ओले पहाड़ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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