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________________ चत्तर चोगो चोकसी, साचो सुलझ्यो सूत । सुणां सकै मणि ! सरड़का, रांगड़ रण-रजपूत ॥८॥ हार ज्याय तो हर नहीं, जीत्यां नहिं मन-जोम । सुणां सकै मणि ! सरड़का जो वनवासी व्योम ॥६॥ हित की सोचै हर वगत, हिये हेमजल हेज । सुणां सकै मणि ! सरड़का, परचे रो नहिं पेज ॥१०॥ पीसेड़ी पीसै नहीं, ट्रॅक मै दो टूक । सुणां सकै मणि ! सरड़का, दुविधा बिना दडूक ।।११॥ पीच काढ़ दै पीप ने, फेर पंपोले पीड़। सुणां सकै मणि ! सरड़का, भीतर बणकर भीड़ ॥१२॥ पछ उठावै पाछलो, पर आगलो टेक। सुणां सके मणि ! सरड़का, हटक न सके हरेक ॥१३॥ ताब करै तरकीब स्यू, फैकै नहीं फहीड़। सुणां सकै मणि ! सरड़का, छेक देखकर छीड़ ।।१४।। बिना बगत बोले नहीं, मोकै चुकै न मोल । सुणां सकै मणि ! सरड़का, डिगै न जिणरी डोल ॥१५॥ कसणी पर हीरो कस, काच कांकरा जाच । सुणांसकै मणि ! सरड़का-सोहली 'चम्पक' साच ॥१६॥ १०४ आसीस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003057
Book TitleAasis
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1988
Total Pages372
LanguageMaravadi, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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