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दोहा
सेकै रोटी स्वयं की, पेली बांधै पाल । (बो) के सड़कासी सरड़का, पाणी मरै पताल ।।
करै न कोई की गई, पड़े न मुंहड़े लाल । सुणा सकै बो सरड़का, मोकै पर मणिलाल ।
मुद्दे मै मजबूत जो, हिरदै में हमदर्द । सुणा सकै मणि ! सरड़का, मस्त-मोड़, मन-मर्द ॥१॥ पज नहीं परपंच मै, पनपण दै नहिं पोल । सुणा सकै मणि ! सरड़का, खरो खेट, जी खोल ।।२।।
अगलै नै नहिं आंगली, टेकण रो दै टेम। सुणा सकै मणि ! सरडका, नीति-निपुण, दृढ़-नेम ॥३॥ लल्ल-चप्पै नहिं लगै, पड़े न आल-पंपाल । सुणा सकै मणि ! सरड़का, हियो हाथ, खुशहाल ।।४।।
अरथ गरथ उलझै नहीं, जगडवाल जंजाल । सुणां सकै बो सरड़का (जो) चालै अपणी चाल ॥५॥
खांपण राखै खाख मै, निर्मोही निर्भीक । सुणां सकै मणि ! सरडका, डांट डपट डाढीक ॥६॥
सागर मै रहणो सदा, बांध मगर स्यूं वैर । सुणां सकै मणि ! सरड़का, दर्दी दुखी दिलेर ।।७।।
सरड़का सोहली १०३
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