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रोज सिख्योड़ो रात नै, चेते सहित चितार, 'चम्पक' स्वाध्यायी सुर्वे, सीमित शान्तिकुमार !।१०॥
'चम्पक' विकथा मै बगत, गमा मती बेकार, चांक किम्मत समय री, सुधिजन शान्तिकुमार ॥११॥
हंसी टाबरां स्यूं न कर, 'चम्पक' हाथ लगाए, बराबरी का स्यूं वरत, सत्कृत शान्तिकुमार !॥१॥
बायां स्यूं बातां नहीं, करणी निजर उठार, 'चम्पक' राखी आंख रो, संवर शान्तिकुमार !।१३।।
चालाकी गुरुवां कन्है, 'चम्पक' मायाचार, बिल मै बड़तां सांप है, सीधो शान्तिकुमार !।१४।।
सेवा मांग सुज्ञता, चतुराइ आचार, 'चम्पक' विनय-विवेक सह, स्थिरता शान्तिकुमार !।१५।।
सेवा स्यूं फूल-फलै, घुलै प्रेम-व्यवहार, 'चम्पक' आनन्द रै झुल, झूले शान्तिकुमार !।१६॥
चतुर नाम चावै नहीं, काम न समझै भार, 'चम्पक' बाही चाकरी, साची शान्तिकुमार !।१७।।
सेवा 'चम्पक' साधना, आत्म-धर्म अवधार, व्यावच तेरापंथ री, शोभा शान्तिकुमार !।१८॥
परम्परा री धारणा, पेहली विधिसर धार, 'चम्पक' चील्हा पर चलै, साधक शान्तिकुमार !॥१९॥
भूलां भूलै लारली, कर्म निर्जरा धार, 'चम्पक' बा निस्वार्थी, सेवा शान्तिकुमार !॥२०॥
तंग तोड़कर दौड़कर, व्यावच विनय बधार,
'चम्पक' कामू की सदा, सुधरै शान्तिकुमार !।२१।। १८ आसीस
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