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'गुरु राखै रहणो बठे, मन नै सदा मिलार, 'चम्पक' जी न चुरावणो, श्रम स्यूं शान्तिकुमार !॥१॥
रलमिल ज्याणो रह जठे, 'चम्पक' चित्र जमार, खार दुराव खिचाव में, सार न शान्तिकुमार !॥२॥
काम-काज मै कमकसी, करै तर्क तकरार, 'चम्पक' घसै न काम स्यूं, सुणाले शान्तिकुमार !।३॥
वैरागी बण बीसरे, सुखहित संजम-भार, 'चम्पक' बारां कद सरै, कारज शान्तिकुमार !!४॥
विषय-वासना नहिं बुझी, परिहर घर-परिवार, 'चम्पक' बो खोटी हुयो, सांप्रत शान्तिकुमार !।५।।
'चम्पक' इसी-बिसी जिसी, मिलज्या जग्यां विचार, 'किमेग राई करिस्सइ', सोज्या शान्तिकुमार !॥६॥
सोग्यो-संताप्यो रहै, 'चम्पक' मुंडो चढ़ार, रच्यां-पच्यां बिन नहिं रमे, संयम शान्तिकुमार !।७।।
लुक-छिप कर नहिं बैठणो, ऊंचो नीचो जार, 'चम्पक' चोडे-च्यानणे, सीखो शान्तिकुमार !1८।। पापात्मा नै वस कर, तरै सन्त संसार मार मोह-मद-मान नै संचर शान्तिकुमार !!६॥
शान्ति-सिखावणी ६७
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