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दुख मत मन मै वेद, 'चम्पक' करै जको भरै। पक्की राख उमेद, अघ उघड्यां सरसी श्रमण !।४५।।
दोरी गलणी दाल, 'चम्पक' अन्त दुखी द्विमुख । चलै दुत रफी चाल, भाटा भिड़ाणियां श्रमण !।४६॥
पाइ भर रो फेर, तैल बाल कर बाणियो। 'चम्पक' का? हेर, साहूकार सदा श्रमण !।४७।।
नान्हा सागै नेह, बड़ा-बुढ़ां आगै विनय । 'चम्पक' मधरो मेह, साथ्यां मै शोभै श्रमण !!४८।।
मुकलाई मै मोल, तंगी मै तेजी हुवै। 'चम्पक' गट्टा-गोल, सहयोगी घालै श्रमण !।४६॥
मिट न 'चम्पक' मैल, समता रहै न समय पर । (तो) ख्याला वाला खेल, साधक जन खेलै श्रमण !।५०।।
सत्पुरुषां री सीख, सुण 'चम्पक' सुख स्यूं सुवै। तिल भर रखै न तीख, शान्त सरोवर सो श्रमण !।५१॥
संध्या और प्रभात, फूलण-फूलण मै फरक । ल्यावै दिन इक रात, 'चम्पक' चीन्हे चिह्न श्रमण !।५२।।
श्रमण-बावनी ६३
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