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________________ ३४२ चित्त और मन मैं अनाकार हूं। मैं निरंजन हूं। मैं पदार्थ और पुद्गल से परे हूं। मैं अमूर्त हूं। मैं चेतनामय, आन्नदमय और शक्तिमय हूं। मैं शब्द, रूप, रस, गंध और स्पर्श से परे हूं। इस भावना से चित्त को भावित कर व्यक्ति अपने स्वरूप का ध्यान करता है। वह प्रारम्भ करता है श्रत से, विकल्प से किन्तु आत्म-स्वरूप से चित्त को भावित कर वह तन्मय बन जाता है, एकान हो जाता है, विचारों को छोड़ देता है। यह आत्म-साक्षात्कार की, विचार-ध्यान की एक पद्धति है। विचार-ध्यान के द्वारा आत्मा का अनुभव किया जा सकता है। जब तल्लीनता और एकाग्रता बढ़ती है कल्पित स्वरूप साक्षात् होने लगता है । व्यक्ति ध्यान में बैठा है। उसे आभास होता है, जैसे सामने ही आत्मा स्थित है या भीतर वैसी ही आत्मा सक्रिय हो रही है। प्रत्यक्षतः साक्षात्कार हो जाता है । इस ध्यान को आज्ञा-विचय ध्यान कहा जाता है। हमने स्थूल का आलंबन लिया, स्थूल का विचार किया, वह स्थूल हट गया और सूक्ष्म सामने प्रस्तुत हो गया। चित्त सूक्ष्म हुआ, चेतना सूक्ष्म हुई और तद्रूप आत्मा का आभास हो गया। यह एक अतीन्द्रिय तत्त्वों के साथ संपर्क स्थापित करने की एक पद्धति है, सूक्ष्म तत्त्वों को जानने की एक प्रकिया है। वैज्ञानिक युग की उपलब्धि __ मनुष्य सारी जीवन-यात्रा स्थूल शरीर की परिक्रमा करते हुए करता है। जीवन इसी स्थूल शरीर के आस-पास चलता है । इस सीमा को पार कर आगे जाने वाले कुछ ही लोग होते हैं। हमारे पास जानने के जितने भी साधन हैं, वे सब स्थूल हैं। वे सब स्थूल कोपकड़ सकते हैं। सूक्ष्म को जानने का कोई भी साधन नहीं है। इस वैज्ञानिक युग ने मनुष्य जाति का बहुत उपकार किया है । आज धर्म के प्रति जितना सम्यग् दृष्टिकोण है वह ५०-१०० वर्ष पूर्व नहीं हो सकता था । आज सूक्ष्म सत्य के प्रति जितनी गहरी जिज्ञासा है, उतनी पहले नहीं थी। कुछ समय पूर्व जब कभी सूक्ष्म सत्य की बात प्रस्तुत होती तो मनुष्य उसे पौराणिक या मन-गढंत मानकर टाल देता था। उसे अन्धविश्वास कहता था। अन्धविश्वास ऐसा शब्द है जिसकी ओट में सब कुछ छिपाया जा सकता है। किन्तु विज्ञान ने जैसे-जैसे सूक्ष्म सत्य की प्रामाणिक जानकारी प्रस्तुत की, वैसे-वैसे अन्धविश्वास स्वर कमजोर पड़ है। आज विज्ञान जिन सूक्ष्म सत्यों का स्पर्श कर चुका है, दो शताब्दी पूर्व उनकी कल्पना करना भी असंभव था। कहा जा सकता है-विज्ञान अतीन्द्रिय ज्ञान की सीमा के आस-पास पहुंच रहा है। प्राचीन काल में साधना द्वारा अतीन्द्रिय ज्ञान का विकास और सूक्ष्म सत्यों का साक्षात्कार किया जाता था। आज के आदमी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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