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माभामंडल
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शरीर जितना सक्रिय रहेगा, उतनी ही शक्ति का व्यय अधिक होगा। जब शक्ति का व्यय अधिक होता है तब उसका संग्रह हो नहीं सकता। शक्ति के अतिरिक्त संचय के बिना नई दिशाओं का उद्घाटन नहीं हो सकता, साधना के नये आयाम नहीं खुल सकते । सुरक्षा कवच
__हम निर्विचार रहना सीखें। निविचारता में विद्युत् की खपत कम होगी । विद्युत् का और तैजस का संचय रहेगा। एक ओर हम प्राण प्रयोग के द्वारा, प्राण को अधिक खींचने के द्वारा भीतर में प्राण-शक्ति को भरें, तेजसशरीर को शक्तिशाली बनाएं और दूसरी ओर उस विद्युत् की खपत को कम करें, हमारी शक्ति का भंडार बढ़ेगा। संकल्प-शक्ति के प्रयोग के द्वारा, प्राणसंग्रह की प्रक्रिया के द्वारा, प्राण भरने की क्रिया के द्वारा शक्ति के भंडार का संवर्द्धन करें और व्यय कम करें। इस स्थिति में शक्ति का जागरण होगा, हमारा आभामंडल शक्तिशाली बनेगा। हमारा भाव-तंत्र शक्तिशाली बनेगा और हम अपने आस-पास एक ऐसे कवच का निर्माण करने में सफल होंगे, जो कवच सारे बाहरी आक्रमणों और सक्रमणों से बचाता रहेगा। आभामंडल को स्वस्थता
हम शुभ भावना करते हैं तब शुभ पुद्गलों का ग्रहण होता है और वे शुभ पुद्गल हमारे आभामंडल को निर्मल बनाते हैं। जैसे अनुकूल भोजन से शरीर पुष्ट होता है और प्रतिकूल भोजन से वह क्षीण होता है वैसे ही पवित्र भावना से शरीर और आभामंडल-दोनों स्वस्थ होते हैं, अपवित्र भावना से दोनों क्षीण होते हैं। भय, शोक, ईर्ष्या आदि के द्वारा अनिष्ट पुद्गलों का ग्रहण होता है, उनसे शरीर और आभामंडल-दोनों विकृत होते हैं।
अशुभ भावना से बचने के लिए बाहरी निमित्तों का उपयोग किया जा सकता है । वे निमित्त हमारी लक्ष्यपूर्ति में सहयोगी बनते हैं। रंगों की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग रंगों की समुचित पूर्ति होने पर मिट जाते हैं, यह उनका शारीरिक प्रभाव है। इसी प्रकार रंगों के परिवर्तन और मात्रा-भेद से मन प्रभावित होता है और चैतन्य-केन्द्र भी जागृत होते हैं।
लाल रंग का ध्यान करने से शक्ति केन्द्र और दर्शन-केन्द्र-दोनों चैतन्यकेन्द्र जागृत होते हैं। पीले रंग का ध्यान करने से आनन्द-केन्द्र जागृत होता है । श्वेत रंग का ध्यान करने से विशुद्धि-केन्द्र, तैजस-केन्द्र और ज्ञानकेन्द्र जागृत होते हैं। बैज्ञानिक उपकरण और आभामंडल
प्राचीनकाल में साधना के आचार्य अपने शिष्य की पहचान, उसकी
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