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लेश्या और भाव
हमारी इस दुनिया में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसे सर्वथा अच्छा कहा जा सके और एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं है, जिसे सर्वथा बुरा कहा जा सके । हम जिसको बुरा मानते हैं, वह अच्छा भी है और जिसे अच्छा मानते हैं, वह बुरा भी है। अच्छाई और बुराई-दोनों साथ-साथ चलती हैं। अन्तर इतना-सा होता है कि अच्छाई जब उभरकर सामने आती है तब बुराई नीचे रह जाती है और जब बुराई उभरकर सामने आती है तब अच्छाई नीचे रह जाती है। इसलिए हमें उस बिन्दु की खोज करनी है, जहां व्यक्ति का रूपान्तरण होता है या जो व्यक्ति को रूपान्तरित करता है। खोज से यह निष्पत्ति हुई कि वह बिन्दु है-लेश्या । लेश्या एक ऐसा चैतन्य-केन्द्र है, जहां पहुंचने पर व्यक्ति का रूपान्तरण घटित होता है। चेतना : तीन स्तर
चेतना के तीन स्तर हैं
० स्थूल चेतना का स्तर-यह स्थूल शरीर के साथ कार्यशील रहता है।
__० लेश्या का स्तर-यह विद्युत् शरीर-तेजस् शरीर के साथ काम करता है।
• अध्यवसाय का स्तर—यह अति सूक्ष्म शरीर (कर्म शरीर) के साथ काम करता है।
शरीर तीन हैं-स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और अति-सूक्ष्म शरीर । स्थूल शरीर है-औदारिक, सूक्ष्म शरीर है--तेजस और अति-सूक्ष्म शरीर है-कर्म शरीर । इन तीन स्तरों पर तीन चेतना केन्द्र काम करते हैं। एक है—चित्त चेतना केन्द्र, दूसरा है-लेश्या चेतना-केन्द्र और तीसरा हैअध्यवसाय चेतना-केन्द्र । ये तीनों तीन स्तरों पर काम करते हैं। चित्त का संबंध हमारे स्थूल शरीर से है । चित्त, मन और इन्द्रियां-ये सब स्थूल शरीर से संबद्ध हैं । लेश्या हमारे स्थूल से संबद्ध नहीं है। जिनके मस्तिष्क है, सुषुम्ना है, नाड़ी-संस्थान है उनके लेश्या होती है तो जिन जीवों में ये नहीं होते, केवल एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है, उनके भी लेश्या होती है। यह लेश्या-तंत्र, भावों का निर्माण करने वाला तंत्र, यह चेतना-केन्द्र सबसे अधिक सक्रिय और जागृत होता है। जितनी स्नायविक क्रिया है, वह सारी शरीर से
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