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________________ चित्त और मन शक्तिशाली, चैतन्यमय और आनन्दमय रह सकते हैं । इस आधार पर हम पूरी भावधारा को शक्ति, चैतन्य और आनन्द के साथ संजो सकते हैं। यदि आदर्श के चुनाव में थोड़ी भी गड़बड़ हो जाती है तो पूरा जीवन. भटक जाता है, भावधारा खण्डित, त्रुटिपूर्ण और दुःख देने वाली बन जाती है। श्रद्धा का बल दूसरी बात है श्रद्धा । आदर्श के साथ ऐसा श्रद्धा का भाव बने कि उसमें कभी छेद न हो । लोग अंधश्रद्धा का प्रयोग करते हैं। श्रद्धा अंधी और सूझती क्या होती है ? श्रद्धा कभी अन्धी होती ही नहीं। वह इतनी मूल्यवान् है कि अन्धी हो ही नहीं सकती। वह निरन्तर ज्ञान के आलोक से आलोकित होती है। श्रद्धा का अपना प्रकाश होता है, अपनी चेतना होती है। वह कभी अप्रकाशमय या अन्धी नहीं होती। अन्धविश्वास, अन्धश्रद्धा जैसे शब्द कैसे चल पड़े, पता नहीं । श्रद्धा नश्छिद्र हो, यह आवश्यक है। उसमें जब छेद होता है तब प्रकाश बिखर जाता है । घड़े में जब छेद होता है, तो पानी रिसते-रिसते धड़ा खाली हो जाता है । घड़ा ऐसा हो कि उसमें कहीं छेद हो ही नहीं। वसा निच्छिद्र घड़ा ही पानी को टिका सकता है, घी को टिका सकता है। जब व्यक्ति की श्रद्ध सछिद्र हो जाती है, डोल जाती है तब जीवन की नैया डोल जाती है। श्रद्धा की नौका छेद रहित होती है तो उस पार पहंचा देती है और छेद वाली बीच में डुबा देती है । श्रद्धा के बल पर असंभव लगने वाला कार्य भी संभव बन जाता है और श्रद्धा के अभाव में संभव लगने वाला कार्य भी असंभव बन जाता है। ध्याता और ध्येय एक हो जाए भावात्मक समस्याओं से निपटने के लिए भाव की पवित्रता और श्रद्धा का बल बहुत जरूरी है । हम अपने आदर्श के प्रति इतने श्रद्धावान् बनें, ऐसा तादात्म्य स्थापित करें कि द्वैत समाप्त हो जाए, ध्याता और ध्येय दो नहीं रहें, दोनों एक हो जाएं । प्रारंभिक अवस्था में ध्याता अलग होता है, ध्येय अलग होता है। जब श्रद्धा का पूरा परिष्कार होता है, वह शैशव अवस्था को छोड़कर प्रोढ़ अवस्था में आती है, तब-ध्याता, ध्येय और ध्यान -तीनों एक हो जाते हैं । वही ध्याता, वही ध्येय और वही ध्यान । तीनों में कोई अन्तर नहीं रहता । ऐसी अवस्था में ही श्रद्धा के परिणाम मिल सकते हैं। लोग कहते हैं-हम श्रद्धा रखते हैं पर परिणाम कुछ भी प्राप्त नहीं होता । श्रद्धा निश्छिद्र हो और परिणाम न आए, ऐसा कभी हो नहीं सकता। समस्या का समाधान : जिनशासन शिष्य ने आचार्य से पूछा-क्या जिन शासन में हमारे मानवीय जीवन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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