________________
२४०
चित्त और मन
अभी समाप्त हो गया। चित्त हमारे अस्तित्व से जुड़ा हुआ है, स्थायी तत्व है। मन स्थायी तत्व नहीं है। मन उत्पन्न होता है, विलीन हो जाता है। हम जब चाहते हैं तब मन को उत्पन्न कर लेते हैं और जब चाहते हैं तब उसको विलीन कर देते हैं, अमन हो जाते हैं। चंचल है चित्त
चित्त का विक्षेप मन का विक्षेप है, चित्त की चंचलता मन की चंचलता है। आदमी चाहता है, चित्त शान्त रहे । आदमी चाहता है, गहरी नींद आए। बिछौने पर जाते ही स्मृति, कल्पना और विचार सताने लग जाते हैं। नींद उचट जाती है। आदमी बेचैन हो जाता है । वह चाहता है-उस समय न स्मृति आए, न कल्पना और विचार आए पर इनसे छूट पाना सहज नहीं होता।
____ मन का स्वभाव है चंचलता। उसका अस्तित्व चंचलता में ही है। हम चित्त को स्थिर कर सकते हैं। जब चित्त स्थिर होता है तब मन अमन बन जाता है, मन होता ही नहीं। जैसे-जैसे चित्त की अवस्था स्थिर होती है, वैसे-वैसे मन अमन की स्थिति में चला जाता है, मन उत्पन्न ही नहीं होता।
हम मन और चित्त को ठीक से समझें। भ्रान्ति में न रहें। मन का अर्थ है-स्मृति । मन का अर्थ है-कल्पना और मन का अर्थ है-चिन्तन । स्मृति, कल्पना और चिंतन के अतिरिक्त मन कुछ भी नहीं है। क्या स्मृति, कल्पना और चिन्तन को स्थिर किया जा सकता है ? क्या स्मृति, कल्पना और चिन्तन को रोका जा सकता है ? कभी नहीं रोका जा सकता । दो अवस्थाएं हैं-या तो मन होगा या मन नहीं होगा। मन होगा तो चंचलता अवश्य होगी। मन को स्थिर नहीं किया जा सकता। चित्त को स्थिर किया जा सकता है। सीमित है मन : व्यापक है चित्त
अमन की अवस्था, मन की समाप्ति की अवस्था ध्यान की अवस्था है । ध्यान के द्वारा अमनस्क स्थिति का अनुभव कर सकते हैं। जहां अमनस्कता आती है, मन समाप्त हो जाता है वहां केवल चित्त काम करता है। मन और चित्त दो हैं, एक नहीं हैं। फ्रायड ने माइंड के आधार पर चिंतन दिया। उसी को मूल्य दिया। यूंग ने दो शब्द दिए-माइंड और साइक। एक है मन और दूसरा है चित्त। मन के द्वारा जीवन और कार्यकलापों की पूरी व्याख्या नहीं की जा सकती । मन एक सीमित तत्त्व है। चित्त व्यापक है । मन और चित्त के आधार पर समूचे आचार और व्यवहार की व्याख्या की जा सकती है। मन समाप्त हो जाता है पर चित्त-चेतना समाप्त नहीं होती। चेतना और अधिक प्रज्वलित होती है। जब मन काम
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org